RTI बन गया है ब्लैकमेल करने का जरिया
उच्चतम न्यायालय ने सूचना आयोगों में खाली पड़े पदों को भरने संबंधी मामलों पर सुनवाई करते वक्त सोमवार को एक तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून डराने-धमकाने और ब्लैकमेलिंग का जरिया बन गया है।
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शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को सूचना आयोगों में तीन महीने के भीतर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करने का आदेश भी दिया। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि तीन महीने की अवधि आज से ही शुरू होगी।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि आरटीआई कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए दिशानिर्देश बनाने की जरूरत है। न्यायमूर्ति बोबडे ने सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, ‘क्या आरटीआई कार्यकर्ता होना पेशा हो सकता है?
जिन लोगों को किसी विषय से कोई सरोकार नहीं है वे भी जानकारी मांगने के लिए आरटीआई दाखिल कर रहे हैं, जबकि इस कानून के पीछे का उद्देश्य लोगों को उन सूचनाओं को बाहर निकालने की अनुमति देना था, जो उन्हें प्रभावित करती हैं। अब सभी प्रकार के लोग सभी प्रकार के आरटीआई आवेदन दाखिल कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘आजकल लेटरहेड पर आरटीआई कार्यकर्ता होने का दावा करते हुए नाम छपवाते हैं। जो लोग इस मामले से जुड़े नहीं हैं वे आरटीआई आवेदन दाखिल कर रहे हैं। यह एक गंभीर बात है। यह मूल रूप से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 506 के तहत आपराधिक धमकी है।’
शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी केंद्र और राज्य सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों के रिक्त पदों को भरने के लिए आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई के दौरान आई।
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