कश्मीर में पाबंदियां : हर सवाल का जवाब चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 22 Nov 2019 06:50:21 AM IST

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को जम्मू-कश्मीर प्रशासन से कहा कि उसे पूर्ववर्ती राज्य से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद वहां लगाए गए प्रतिबंधों के बारे में हर सवाल का जवाब देना होगा।


उच्चतम न्यायालय

न्यायमूर्ति एनवी रमन के नेतृत्व वाली पीठ ने प्रशासन की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली याचिकाओं में व्यापक पैमाने पर तर्क दिए गए हैं और उन्हें सभी सवालों का जवाब देना होगा। पीठ में न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बीआर गवई भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, मिस्टर मेहता, आपको याचिकाकर्ताओं के हर सवाल का जवाब देना होगा जिन्होंने विस्तार में तर्क दिए हैं । आपके जवाबी हलफनामे से हमें किसी नतीजे पर पहुंचने में कोई मदद नहीं मिली है। यह संदेश न दें कि आप इस मामले पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहे हैं।

मामले की सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने कहा, हम जम्मू -कश्मीर के मामले में किसी हिरासती मामले की सुनवाई नहीं कर रहे हैं । हम इस समय दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं जो अनुराधा भसीन और गुलाम नबी आजाद ने दायर की हैं । ये आवाजाही की स्वतंत्रता और प्रेस आदि से जुड़ी हैं। पीठ ने कहा कि केवल एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लंबित है जो कि एक कारोबारी की हिरासत के खिलाफ है क्योंकि याचिकाकर्ता ने उच्चतम न्यायालय के साथ ही जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में भी यह याचिका दाखिल की थी। पीठ ने कहा, अब उन्होंने उच्च न्यायालय से याचिका वापस ले ली है और यहां दाखिल याचिका लंबित है।



याचिकाएं गलत और अप्रासंगिक
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद वहां लगाए गए प्रतिबंधों में ढील दी जा रही है और वहां पूर्ण बंद के आरोप लगाने वाली याचिकाएं गलत तथा अप्रासंगिक हैं।

मेहता ने न्यायमूर्ति एनवी रमन की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अपनी दलीलें रखना शुरू किया और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद क्षेत्र में लागू कुछ पाबंदियों को सही ठहराया। मेहता ने पीठ को सूचित किया कि 13 अगस्त के बाद से क्षेत्र में पाबंदियों से छूट दी गई है और वहां पूर्ण बंद नहीं है जैसा कि याचिकाकर्ता बता रहे हैं।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद की याचिका समेत पाबंदियों के आरोप लगाने वाली याचिकाएं गलत है और अप्रांसगिक हो चुकी हैं।  सॉलीसिटर जनरल ने कहा कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने से पहले जम्मू-कश्मीर में केंद्र के कई कानून लागू नहीं होते थे। राज्य में सूचना का अधिकार और बाल विवाह रोकथाम के कानून भी लागू नहीं होते थे।

उन्होंने पीठ को बताया कि जम्मू-कश्मीर में पाबंदियां लगाने अथवा हटाने के बारे में फैसला प्रशासन ने अपने विवेक से लिया। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में पोस्टपेड मोबाइल सेवा जैसी सेवाएं 14 अक्टूबर से शुरू हो चुकी हैं। स्कूल खोले जा चुके हैं, बल्कि 917 स्कूल ऐसे हैं जो अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद से कभी बंद नहीं हुए।

भाषा
नई दिल्ली


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