पुलिस को अचल सम्पत्ति पर कब्जे का अधिकार नहीं

Last Updated 25 Sep 2019 05:33:29 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामले की जांच के दौरान पुलिस को अचल सम्पत्ति को कुर्क करने या जब्त करने का अधिकार नहीं है।


सुप्रीम कोर्ट

यह अधिकार सिर्फ अदालतों को है। पुलिस चल सम्पत्ति को कब्जे में ले सकती है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की बेंच ने बंबई हाई कोर्ट का फैसला बरकरार रखते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 102 में अचल सम्पत्तियों को जब्त और कुर्क करने का पुलिस का अधिकार शामिल नहीं है। बेंच की ओर से फैसला लिखते हुए जस्टिस खन्ना ने कहा कि अपराध की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी को निर्णय लेने या मामले को निपटाने का अधिकार नहीं है। यदि हम सिर्फ संदेह के आधार पर पुलिस को अचल सम्पत्ति जब्त करने का अधिकार दे देते हैं, तो इसका मतलब उसे असीमित अधिकार प्रदान करना होगा। अचल सम्पत्ति के मामले सिविल नेचर के होते हैं। केवल सिविल कोर्ट ही इस बारे में आदेश पारित करने में सक्षम हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामले में पुलिस अधिकारी सबूत जुटाकर अदालत में आरोप पत्र दायर करता है। अचल सम्पत्ति के कागजात सबूत के तौर पर एकत्र करने के लिए सीआरपीसी की धारा 145 और 146 में अलग से प्रावधान है।

पुलिस को आपराधिक केस में अचल सम्पत्ति के  दस्तावेज जुटाने का अधिकार है, लेकिन किसी को उसकी प्रॉपर्टी से बेदखल करने का हक नहीं है। मकान, दुकान या अन्य किसी अचल सम्पत्ति के मालिकाना हक का विवाद तय करने का अधिकार सिर्फ सिविल कोर्ट को है।  सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने महाराष्ट्र के एक मामले में उठे विवाद को तीन सदस्यीय बेंच को भेजा था। बेंच के एक अन्य सदस्य जस्टिस दीपक गुप्ता ने अलग से दिए फैसले में कहा कि यदि महाराष्ट्र सरकार की दलील को मान लिया जाए, तो इससे अराजकता फैल जाएगी। उन्होंने उदाहरण देकर कहा कि यदि मकान मालिक और किराएदार में झगड़ा हो जाता है और पुलिस किराएदार के हिस्से वाले भवन को सील कर देती है, तो इससे किराया कानून मजाक बनकर रह जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 102(1) में चोरी की गई प्रॉपर्टी को कब्जे में लेने का तात्पर्य चल सम्पत्ति से है, ताकि कब्जे में ली गई प्रॉपर्टी को केस प्रॉपर्टी के रूप में अदालत में पेश किया जा सके। यहां प्रॉपर्टी को कब्जे में लेने का मतलब वास्तविक कब्जा है। लेकिन जिस प्रॉपर्टी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं ले जाया जा सकता, उसे अपने अधिकार में लेने का सवाल ही नहीं उठता।

विवेक वार्ष्णेय/सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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