अयोध्या मामला: निर्मोही अखाड़े ने कहा, विवादित ढांचे पर उसका अधिपत्य रहा है
राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील अयोध्या स्थित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में एक हिन्दू पक्षकार ने दावा किया कि 1934 से इस विवादित ढांचे में किसी भी मुस्लिम को प्रवेश की इजाजत नहीं थी और यह पूरी तरह से निर्मोही अखाड़े के अधिकार में था।
- 12:45 : उच्चतम न्यायालय ने कहा, उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि 1934 से पहले मुसलमान वहां नियमित रूप से नमाज पढते थे
- 12:45 : निर्मोही आखाड़ा ने उच्च न्यायालय के फैसले के आधार पर उच्चतम न्यायालय को बताया कि 1934 से 1949 तक मुसलमान विवादित ढांचे में जुमे की नमाज अदा करते थे
- 12:43 : निर्मोही आखाड़ा के वकील ने भूमि विवाद मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निष्कर्षों का हवाला दिया
- 12:03 : न्यायालय ने निर्मोही आखाड़ा से कहा कि वह अपनी दलीलों को दीवानी विवाद मामले तक ही सीमित रखे
- 11:58 : न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश अधिवक्ता राजीव धवन से कहा- हम किसी की दलीलों को छोटा नहीं करना चाहते, अदालत की गरिमा बनाए रखें
- 11:39 : पुरातन काल से उस जगह पर हमारा नियंत्रण, प्रबंधन है और राम लला की पूजा करते रहे हैं: निर्मोही आखाड़ा
- 11:34 : निर्मोही आखाड़ा ने न्यायालय से कहा, मैं इस क्षेत्र का प्रबंधन और नियंत्रण मांग रहा हूं
- 11:34 : 1934 से ही किसी भी मुसलमान को वहां प्रवेश की अनुमति नहीं थी और उस पर सिर्फ निर्मोही आखाड़ा का नियंत्रण था: आखाड़ा के वकील
- 11:33 : निर्मोही आखाड़े के वकील ने कहा, बाहरी परिसर जिसमें सीता रसोई, चबूतरा, भंडार गृह हैं, वे आखाड़ा के नियंत्रण में थे और किसी मामले में उन पर कोई विवाद नहीं था
- 11:33 : सैकड़ों साल तक अंदर के परिसर और राम जन्मस्थान पर हमारा नियंत्रण था: निर्मोही आखाड़ा
- 11:32 : निर्मोही आखाड़ा के वकील ने अयोध्या मामले में बहस शुरू की, कहा मुकदमा मूलत: वस्तुओं, मालिकाना हक और प्रबंधन अधिकारों के बारे में है।
![]() सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) |
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदसयीय संविधान पीठ के समक्ष अयोध्या प्रकरण में निर्मोही अखाड़े की ओर से बहस शुरू करते हुये वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन ने यह ढांचा पूरी तरह से उसके अधिकार में ही है और वे इस क्षेत्र का प्रबंधन और इस पर अधिकार चाहते हैं।
इस विवाद का मध्यस्थता के माध्यम से समाधान खोजने का प्रयास विफल होने के बाद संविधान पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैासले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर आज से सुनवाई शुरू की है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
संविधान पीठ ने दैनिक सुनवाई शुरू करते हुये अयोध्या प्रकरण की कार्यवाही की रिकार्डिंग करने के लिये राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के पूर्व विचारक के एन गोविन्दाचार्य का आवेदन अस्वीकार कर दिया।
सुशील जैन ने संविधान पीठ से कहा कि निर्मोही अखाड़े का वाद मूलत: इस पर अधिपत्य और इसके प्रबंधन के अधिकार के लिये है। उन्होने कहा, ‘‘मैं एक पंजीकृत संस्था हूं। मेरा वाद मूल रूप से वस्तुओं, अधिपत्य और प्रबंधन के अधिकार के लिये है।’’
उन्होंने कहा कि इस ढांचे का भीतरी बरामदा और राम जन्मस्थान सैकड़ों साल से निर्मोही अखाड़े के पास है।
जैन से कहा, ‘‘भीतरी बरामदा और राम जन्मस्थान सैकड़ों साल से हमारे पास है। इसके बाहरी बरामदे में स्थित ‘सीता रसोई’, ‘चबूतरा’, ‘भण्डार गृह’ हमारे पास है और यह कभी भी किसी मामले में विवाद का हिस्सा नहीं था।’’ इन अपीलों पर चल रही सुनवाई के दौरान पीठ के सदस्यों और एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन के बीच तीखी नोंकझोंक भी हुयी।
पीठ ने निर्मोही अखाड़े के अधिवक्ता से कहा कि वह अपनी दलीलें दीवानी विवाद तक ही सीमित रखें और कुछ लिखित दस्तावेजों को पढ़ना छोड़ दें, इस पर धवन ने हस्तक्षेप किया और कहा कि संभवत: दलीलों में किसी प्रकार की कमी नहीं होगी।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि किसी भी तरह से सुनवाई या बहस में कटौती नहीं की जायेगी और इस बारे में किसी के भी मन में कोई संदेह नहीं रहना चाहिए।
धवन ने दुबारा कहा कि यही तो हम भी कह रहे थे।
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘डॉ धवन, न्यायालय की गरिमा बनाकर रखिये।’’
धवन ने इस पर कहा कि उन्होंने तो कुछ सवालों के सिर्फ जवाब ही दिये थे।
पीठ ने उनसे कहा, ‘‘कृपया यह ध्यान रखिये कि आप न्यायालय के एक अधिकारी हैं और हम सिर्फ यही कह रहे हैं कि हम किसी की भी दलीलों को छोटा नहीं करने जा रहे हैं।’’
सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि के 2.77 एकड़ विवादित हिस्से पर अपना दावा किया और कहा कि यह आदि काल से उसके ही पास है और इस स्थल पर राम लला की पूजा हो रही है।
इस पर पीठ ने कहा, ‘‘वैसे भी, उच्च न्यायालय की प्रारंभिक डिक्री में आपको विवादित क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा दिया गया है।’’
शीर्ष अदालत इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही हैं। उच्च न्यायालय ने बहुमत के फैसले में कहा था कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि तीनों पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला- के बीच बराबर बराबर बांट दिया जाये।
यह विवादित ढांचा छह दिसंबर, 1992 को कार सेवकों ने ध्वस्थ कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाते हुये अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था।
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