तुर्की के साथ हों गहरे अर्थिक संबंध : मोदी

Last Updated 01 May 2017 02:28:05 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को तुर्की के साथ गहरे आर्थिक संबंधों पर जोर देते हुए इस दिशा में सक्रिय प्रयास करने का आह्वान किया.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाईल फोटो)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुनियादी ढांचा, ऊर्जा और पर्यटन के क्षेत्र में निवेश के लिए तुर्की की कंपनियों को आमांत्रित करते हुये सोमवार को कहा कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार क्षमता से काफी कम है तथा इसे और बढ़ाने की जरूरत है.

तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एदरेगन ने भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते और डॉलर के बदले अपनी मुद्रा में व्यापार की वकालत की.

श्री एदरेगन के साथ भारत-तुर्की कारोबार समिट को संबोधित करते हुये श्री मोदी ने दिल्ली में कहा कि भारत ने 2022 तक पांच लाख मकानों के निर्माण का लक्ष्य रखा है. पचास शहरों में मेट्रो रेल परियोजनाएं और कई राष्ट्रीय गलियारों में हाई स्पीड ट्रेनें शुरू की जा रही हैं. अगले कुछ वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ा कर 175 गीगावाट करने का लक्ष्य है. रेलवे नेटवर्क का आधुनिकीकरण तथा राजमार्गो का उन्नयन किया जा रहा है. इसी तरह हवाई अड्डों के उन्नयन पर भी फोकस है. उल्लेखनीय है कि तुर्की की कंपनियाँ निर्माण क्षेा में अपनी विशेषज्ञता के लिए जानी जाती हैं.

पिछले तीन साल के दौरान अपनी सरकार द्वारा देश में कारोबार के अनुकूल वातावरण तैयार करने की दिशा में उठाये गये कदमों का उल्लेख करते हुये प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में कभी भी निवेश का माहौल इतना अच्छा नहीं रहा है जितना आज है. सरकार ने बुनियादी ढांचा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीतियों में बदलाव किए हैं.

श्री मोदी ने कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में वर्ष 2008 में श्री एदरेगन की भारत या के समय दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 2.8 अरब डॉलर था जो 2016 तक बढ़कर 6.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. इसमें तेज बढ़ोतरी हुई है लेकिन यह काफी नहीं है.

समिट में भारत की ओर से उद्योग संगठन फिक्की, सीआईआई और एसोचैम तथा तुर्की की ओर से उसके विदेश आर्थिक संबंध बोर्ड (डीईआईके) के प्रतिनिधि उपस्थित थे. दो दिवसीय या पर भारत पधारे श्री एदरेगन के साथ बोर्ड के नेतृत्व में आये प्रतिनिधि मंडल में 153 उद्योगपति शामिल हैं.

श्री एदरेगन ने भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते की वकालत करते हुए कहा कि यदि इस पर चर्चा शुरू कर सकें तो दोनों देशों के संबंध और गहरे होंगे. समिट को द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों के नये युग की शुरुआत बताते हुये उन्होंने परमाणु ऊर्जा और एयरोस्पेस क्षेत्र में भी संबंध बढ़ाने की इच्छा जतायी.

उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार अभी करीब साढ़े छह अरब डॉलर का है जो काफी कम है. इसकी असली क्षमता जल्द सामने आयेगी. हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा समय में व्यापार का झुकाव भारत के पक्ष में है जिसमें संतुलन लाने की आवश्यकता है.

श्री एदरेगन ने भारतीय कंपनियों को तुर्की में निवेश के लिए आमांत्रित करते हुए कहा कि तुर्की उनके लिए काला सागर के अलावा पश्चिम एशिया और मध्य एशिया का प्रवेश द्वार साबित हो सकता है. उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच एक-दूसरे की मुद्रा में व्यापार दोनों पक्षों के लिए लाभदायक होगा. तुर्की दुनिया की 17वीं और भारत सातवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और आपसी कारोबार बढ़ाकर दोनों देशों की अर्थव्यवस्था इससे कहीं ज्यादा ऊपर उठ सकती है.

भारतीय कंपनियों को तुर्की में निवेश के लिए आमांत्रित करते हुये उन्होंने कहा कि वे बिना चिंता किये वहाँ निवेश कर सकती हैं. वहाँ प्रतिस्पर्धा काफी है और बेहतर निवेश माहौल है. उन्होंने कहा कि तुर्की में इंफ्रास्ट्रॉक्चर और ऊर्जा के क्षेा में काफी अवसर है. इसके अलावा उन्होंने परमाणु ऊर्जा, आईटी, हाईटेक और एयरो स्पेस में भी सहयोग की पेशकश की.

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ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग के बारे में श्री मोदी ने कहा कि दोनों देशों में ऊर्जा की कमी है और इसकी माँग बढ़ रही है. इसलिए हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में सहयोग दोनों के साझा हित में हो सकता है. यही बात सौर एवं पवन ऊर्जा के लिए प्रासंगिक है. इस प्रकार ऊर्जा क्षेत्र द्विपक्षीय संबंधों का महत्त्वपूर्ण आधार हो सकता है.

प्रधानमंत्री ने खनन और खाद्य प्रसंस्करण को अवसरों भरा क्षेत्र बताया है. उन्होंने कहा कि तुर्की का विनिर्माण क्षेत्र काफी मजबूत है और भारत सस्ते विनिर्माण का केंद्र है. कम लागत के अलावा यहाँ बड़ी संख्या में कुशल एवं अर्धकुशल श्रमबल और मजबूत अनुसंधान एवं विकास क्षमता मौजूद है.

उन्होंने दोनों देशों के उद्योग संगठनों से पहल करते हुये व्यापारिक रिश्ते बढ़ाने की अपील की और उन्हें निजी स्तर पर सहयोग का आासन दिया. उन्होंने कहा कि आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग पर इंडिया-तुर्की संयुक्त समिति की अगली बैठक में द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश बढ़ाने के उपायों की समीक्षा की जानी चाहिये.



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