गांधी और लूथर को जोड़ने की कोशिश

Last Updated 08 Nov 2010 01:50:26 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर को अपना हीरो मानते हैं।


ओबामा पत्नी मिशेल ओबामा के साथ राजघाट पहुंचे। उन्होंने यमुना किनारे बनी समाधि पर पुष्प अर्पित कर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी।

ओबामा ने गांधी के जीवन से प्रभावित मार्टिन लूथर किंग की याद में बने स्मारक से एक पत्थर सोमवार को राजघाट को समर्पित किया। यह पत्थर ओबामा के व्यक्तित्व का ही परिचायक है कि गांधीजी के समाधिस्थल लेकर आए। वैसे मार्टिन लूथर किंग में वह गांधीजी को देखते हैं। वह इसलिए है क्योंकि मार्टिन लूथर गांधीजी से प्रभावित थे।

ओबामा-मनमोहन साझा प्रेस कॉंफ्रेंस

उन्होंने आगंतुक पुस्तिका में लिखा,’ वे गांधी की ’महान आत्मा’ को हमेशा याद रखेंगे,जिन्होंने शांति, संयम और प्यार के संदेश से पूरी दुनिया को बदल दिया था। बापू के निधन के 60 से अधिक साल गुजरने के बाद भी उनकी आभा दुनिया को प्रेरणा देती है।

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राजघाट पर ओबामा दंपति को चरखा, गांधी की प्रतिमा और सात बुराइयों को दर्शाने वाला कागज का रोल भेंट किया गया।

इससे पूर्व गांधी के बड़े प्रशंसक माने जाने वाले ओबामा ने मुम्बई में मणि भवन जाकर बापू से जुड़े इतिहास को जानने की कोशिश की थी। उस दौरान उन्होंने अतिथि पुस्तिका में लिखा, "महात्मा गांधी सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के नायक हैं।"

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गौरतलब है कि महान लोक अधिकारवादी नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर पर महात्मा गांधी के अहिंसावाद का काफी प्रभाव था। गांधीजी की विचारधारा से प्रेरित होकर ही मार्टिन लूथर ने अहिंसा को हथियार बनाया था।

लूथर ने वर्ष 1959 में भारत की यात्रा की थी। उनकी इस यात्रा के स्वर्ण जयंती वर्ष के मौके पर अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स ने एक ऐसा प्रस्ताव पारित किया था जिसमें लूथर पर महात्मा गांधी के प्रभाव का जिक्र किया गया। प्रस्ताव में कहा गया है कि लूथर ने गांधीवादी दर्शन का गहरा अध्ययन किया था। इससे उनके नागरिक अधिकारवादी आंदोलन को खास दिशा मिली।

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डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर का जन्म 1929 में अट्लांटा, अमेरिका में हुआ था। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में नीग्रो समुदाय के प्रति होने वाले भेदभाव के विरुद्ध सफल अहिंसात्मक आंदोलन का संचालन किया। 1955 का वर्ष उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था। उनको अमेरिका के दक्षिणी प्रांत अल्बामा के मांटगोमरी शहर में डेक्सटर एवेन्यू बॅपटिस्ट चर्च में प्रवचन देने बुलाया गया और इसी वर्ष मॉटगोमरी की सार्वजनिक बसों में काले-गोरे के भेद के विरुद्ध एक महिला रोज पार्क्स ने गिरफ्तारी दी। इसके बाद ही मार्टिन लूथर ने प्रसिद्ध बस आंदोलन चलाया।

पूरे 381 दिनों तक चले इस सत्याग्रही आंदोलन के बाद अमेरिकी बसों में काले-गोरे यात्रियों के लिए अलग-अलग सीटें रखने का प्रावधान खत्म कर दिया गया। बाद में उन्होंने धार्मिक नेताओं की मदद से समान नागरिक कानून आंदोलन अमेरिका के उत्तरी भाग में भी फैलाया। उन्हें 64 में विश्व शांति के लिए सबसे कम् उम्र मे नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधियां दीं। धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं ने उन्हें मेडल प्रदान किए।

मार्टिन लूथर गांधी जी के अहिंसक आंदोलन से बेहद प्रभावित थे। गांधीजी के आदर्शों पर चलकर ही डॉ.किंग ने अमेरिका में इतना सफल आंदोलन चलाया, जिसे अधिकांश गोरों का
भी समर्थन मिला।1959 में उन्होंने भारत की यात्रा की।

मार्टिन लूथर की उक्ति थी- 'हम वह नहीं हैं, जो हमें होना चाहिए और हम वह नहीं हैं, जो होने वाले हैं, लेकिन खुदा का शुक्र है कि हम वह भी नहीं हैं, जो हम थे।' 4 अप्रैल, 1968 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई।



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