झीलों की नगरी का अम्बिका मंदिर

Last Updated 03 Apr 2011 10:55:17 PM IST

झीलों की नगरी उदयपुर जिले में स्थित अम्बिका मंदिर मूर्ति शिल्प का बेजोड़ नमूना है.


जहां पर्यटक प्रणयभाव में युगल, अंगडाई लेते हुए और दर्पण निहारती नायिका, शिशु क्रीडा को एकटक निहारते है.

इतिहासविज्ञों के अनुसार मध्यकालीन गौरवपूर्ण मंदिरों की श्रृंखला में सुनियोजित ढंग से बनाया गया जगत का अंबिका मंदिर मेवाड के प्राचीन शिल्प का उत्कृष्ट नमूना है. जीवन की जीवन्तता एवं आनन्दमयी क्षणों की अभिव्यक्ति मूर्तियों में स्पष्ट दर्शनीय है.
    
नृत्य आकृतियां, पूजन सामग्री सजाए रमणी, महिषा सुरमर्दनी, नवदुर्गा, वीणा धारिणी सरस्वती, नृत्य करते गणपति, यम, कुबेर, वायु, इन्द्र, वरूण आदि कलात्मक प्रतिमाओं का अचंम्भित कर देने वाला मूर्तिशिल्प का खजाना और अद्वितीय स्थापत्य कला को अपने में समेटे अंबिका मंदिर राजस्थान के मंदिरों की मणिमाला का चमकता मोती कहा जा सकता है.
    
मूर्तियों का लालित्य, मुद्रा, भाव, प्रभावोत्पादकता, आभूषण अलंकरण, केशविन्यास, वस्त्रों का अंकन और नागर शैली में स्थापत्य का आकर्षण शिखर बंद मंदिर को खजुराहों और कोणार्क मंदिरों की श्रृंखला में ला खड़ा कर देता है. मंदिर के अधिष्ठान, जंघाभाग, स्तम्भों, छत, झरोखों एवं देहरी का शिल्प-सौंदर्य देखते ही बनता है.
    
इतिहासकारों के मुताबिक सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर परिसर करीब डेढ सौ फीट लम्बे ऊंचे परकोटे से घिरा हुआ है. पिछोला झील उदयपुर से करीबन पचास किलोमीटर दूर स्थापत्य शिल्प कला का अद्धितीय कारीगरी के लिए विख्यात यह मंदिर गिर्वा की पहाडियों के बीच बसे कुराबड गांव के समीप है.

इतिहासकारों का मानना है कि यह स्थान पांचवीं एवं छठी शताब्दी में शिव-शक्ति सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा. इसका निर्माण खजुराहो में बने लक्ष्मण मंदिर से पहले करीब 960 ई. के आस-पास माना जाता है.
   
मंदिर के स्तम्भों पर उत्कीर्ण लेखों से पता चलता है कि 11वीं सदी में मेवाड के शासक अल्लट ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था तथा यहां देवी को अम्बिका कहा गया है. धार्मिक महत्व की दृष्टि से यह प्राचीन शक्ति पीठ है.
   
पूर्व की ओर दुमंजिले प्रवेश मण्डप की बाहरी दीवारों पर प्रणय मुद्रा में नर-नारी, द्वार स्तम्भों पर अष्ट मातृका प्रतिभाएं, रोचक आकृतियां तथा मण्डप की छत पर समुद्र मंथन दर्शनीय है. छत का निर्माण परम्परागत शिल्प के अनुरूप कोनों की ओर से चपटी एवं मध्यम में पदमकेसर के अंकन के साथ निर्मित है.
   
मुख्य मंदिर करीब पचास फुट की दूरी पर पर्याप्त सुरक्षित अवस्था में है. मंदिर के सभा मण्डप का बाहरी भाग दिक्पाल, सुर-सुंदरी, विभिन्न भावों में रमणियां, वीणाधारणी सरस्वती, विविध देवी प्रतिमाओं की सैंकडों मूर्तियों से सज्जित है.
   
दायीं ओर जाली के पास सफेद पाषाण में निर्मित नृत्य भाव में गणपति की दुर्लभ प्रतिमा है. उत्तर एवं दक्षिण ताक में भी विविध रूपों में देवी अवतार की प्रतिमाएं नजर आती है. प्रतिमाएं स्थानीय पारेवा नीले-हरे रंग के पाषण में तराशी गई है.
   
गर्भगृह की परिक्र मा के लिए सभामण्डप के दोनों ओर छोटे-छोटे प्रवेश द्वार बनाए गए है. गर्भगृह की विग्रह पट्टिका मूर्तिकला का अदभुत खजाना है. यहां द्वारपाल के साथ गंगा-यमुना, सुर-सुंदरी, विद्याधर एवं नृत्यांगनाओं के साथ-साथ देव प्रतिमाओं के अंकन में शिल्पियों का श्रम देखते ही बनता है. गर्भगृह की देहरी भी कलात्मक है. गर्भगृह में प्रधान पीठिका पर अम्बिका माता की प्रतिमा स्थापित है. 



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