सावधानी बरतेंगे तभी होगी आईवीएफ से संतान प्राप्ति

Last Updated 29 Dec 2017 12:46:03 PM IST

भागदौड़ वाली जिंदगी, असंतुलित जीवनशैली और कुछ शारीरिक कमी का संतान प्राप्ति की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर हो रहा है. कई दंपति संतान सुख से दूर हैं.


सावधानी बरतेंगे तभी होगी IVF से संतान प्राप्ति

ऐसे में मां या पिता बनने के लिए उनके पास आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलिाइजेशन का विकल्प होता है. आईवीएफ की सफलता की दर काफी तेजी से बढ़ी है, लेकिन कई बार देखा जाता है कि इसकी संभावना कई लोगों में कम होती है या काफी परेशानी आती है. विशेषज्ञों के मुताबिक कभी-कभी इसके सफल न होने की कई वजहें हैं, जिस पर आईवीएफ की सफलता निर्भर करती है. इसलिए अगर आप आईवीएफ के लिए आगे बढ़ना चाह रहे हैं तो उससे पहले कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए. इसमें पहले की प्रेगनेंसी का इतिहास, आपकी उम्र आदि काफी महत्वपूर्ण हैं. जैसे-

कामयाबी के लिए उम्र है अहम
यहां आपको यह समझना होगा कि आईवीएफ साइकल की सफलता में उम्र महत्वपूर्ण है. जानकारों के मुताबिक आपके अंडे या वीर्य (स्पर्म) की गुणवत्ता आपकी उम्र पर निर्भर करती है. वैसी महिलाएं जिनकी उम्र 35 साल से कम है, उनमें आईवीएफ की सफलता की संभावना अधिक होती है. जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है, आपके अंडों की गुणवत्ता और मात्रा दोनों घटती जाती हैं. यहां तक कि जीवित जन्मों में 35 साल से कम की महिलाओं में आईवीएफ की सफलता की दर 40 प्रतिशत है.

पहले की प्रेगनेंसी के बारे चिकित्सक से कुछ न छुपाएं
जब आप आईवीएफ साइकल के लिए जा रहे हैं तो डॉक्टर से पहले की प्रेगनेंसी से जुड़ी सारी बातें अवश्य साझा करें. आईवीएफ की सफलता में उपर्युक्त बातें काफी मायने रखती हैं और अगर वह आपके पहले साथी से हो. बार-बार होने वाले गर्भपात या एक अलग साथी जैसे कारक आईवीएफ सफलता दर कम कर सकते हैं.



प्रजनन संबंधी समस्याओं की समझ
कई बार देखा गया है कि पुरु षों में प्रजनन समस्या की वजह से आईवीएफ की सफलता कम हो जाती है. इनमें गर्भाशय संबंधी असामान्यताएं, डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल (डीईसी) के जोखिम, कम शुक्राणु एकाग्रता और रेशेदार ट्यूमर जैसी समस्या आईवीएफ चक्र को सफल नहीं होने देते हैं. इसकी सफलता के कारक स्त्री बीजजनन पर निर्भर करते हैं. डिम्बग्रंथि रोग, एफएसएच का अधिक स्तर कम डिम्बग्रंथि रिजर्व को दिखाते हैं जो आईवीएफ की संभावना कम करते हैं. जब पुरुष और महिला दोनों बांझ होते हैं तो आईवीएफ के सफल होने की संभावना कम होती है. साथ ही कितने समय से बांझ हैं, यह भी मायने रखता है.

भ्रूण की गुणवत्ता और डब्ल्यूओआई की जांच
भ्रूण की गुणवत्ता और विंडो ऑफ इम्प्लांटेशन (डब्ल्यूओआई) की गुणवत्ता की जांच पहले ही हो जानी चाहिए. अगर इसमें किसी तरह की क्षमता है और इसे गर्भाशय में गलत समय में डाला जाता है तो दोनों ही आईवीएफ की असफलता की वजह होंगे. कहा जाता है कि रोकथाम इलाज से बेहतर है. इसलिए, सहायता युक्त प्रजनन इलाज शुरू करने से पहले आईजेनोमिक्स के द्वारा एंडोमेट्रियल रिसेप्टीविटी विश्लेषण (ईआरए) करा लेना चाहिए. इससे यह पता चल जाता है कि मरीज को विंडो ऑफ इम्प्लांटेशन (डब्ल्यूओआई) की आवश्यकता है या नहीं.

संतान सुख की संभावना बढ़ाती है यह प्रक्रिया
जिन महिलाओं के बच्चे नहीं हैं. वे इन विट्रो र्फटलिाइजेशन (आईवीएफ) के जरिए मां बनने की उम्मीद को और ज्यादा बढ़ा सकती हैं. पारंपरिक आईवीएफ तकनीक निषेचन के लिए शुक्राणुओं और अंडे के फ्यूज़न पर काम करती है.

क्या है आईवीएफ यानी इन विट्रो र्फटलिाइजेशन
यह किसी भी समस्या के कारण लाइलाज निसंतान दंपति को बच्चे का तोहफा देने की ऐसी प्रक्रिया है जो दिन प्रतिदिन लोकप्रिय होती जा रही है.

इस प्रक्रिया में अधिक अंडों के उत्पादन के लिए महिला को र्फटििलटी दवाइयां दी जाती हैं और उसके बाद एक छोटी सी सर्जरी के माध्यम से अंडों को निकाला जाता है. इसके बाद इन्हें प्रयोगशाला में कल्चर डिश में तैयार पति के शुक्राणुओं के साथ मिलाकर निषेचन के लिए रख दिया जाता है. यह सब अल्ट्रासाइंड के तहत किया जाता है. प्रयोगशाला में इसे दो-तीन दिन के लिए रखा जाता है और इससे बने भ्रूण को वापस महिला के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है.

आईवीएफ की पूरी प्रक्रिया में दो से तीन सप्ताह का समय लग जाता है. इसमें डॉक्टर की सलाह, जांच, रिपोर्ट की दोबारा जांच, स्टीमुलेशन, अंडों और शुक्राणुओं का संग्रह और अंत में निषेचन के बाद भ्रूण का गर्भ में प्रत्यारोपण शामिल है.

इसकी सफलता- असफलता का पता अगले 14 दिनों में रक्त परीक्षण/प्रेग्नेंसी टेस्ट के बाद लगता है.

 

मुफीज जिलानी/सहारा न्यूज ब्यूरो


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