श्रीलंका में राष्ट्रपति गोटबाया के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव गिरा
श्रीलंका के सबसे खराब आर्थिक संकट के कारण राजपक्षे के इस्तीफे की मांग को लेकर देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों के बीच, राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के खिलाफ विपक्ष द्वारा पेश किया गया अविश्वास प्रस्ताव मंगलवार को संसद में विफल साबित हुआ।
![]() श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे |
‘इकोनॉमी नेक्स्ट‘ की रिपोर्ट के मुताबिक, विपक्षी तमिल नेशनल एलायंस (टीएनए) के सांसद एमए सुमंथिरन द्वारा राष्ट्रपति राजपक्षे को लेकर नाराजगी जताने वाले मसौदे पर बहस के लिए संसद के स्थाई आदेशों को निलंबित करने का प्रस्ताव पेश किया था।
रिपोर्ट में बताया गया कि 119 सांसदों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। केवल 68 सांसदों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जिससे यह अविश्वास प्रस्ताव असफल हो गया और इसने 72 वर्षीय राष्ट्रपति को सहज जीत दिलाई। प्रस्ताव के साथ विपक्ष ने यह दिखाने की कोशिश की कि राष्ट्रपति राजपक्षे के इस्तीफे की देशव्यापी मांग देश की विधायिका में कैसे परिलक्षित होती है।
मुख्य विपक्षी दल समागी जन बालवेगया (एसजेबी) के सांसद लक्ष्मण किरीला ने प्रस्ताव का समर्थन किया था। एसजेबी सांसद हष्रा डी सिल्वा के अनुसार, प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने वालों में श्रीलंका के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भी शामिल थे। मानवाधिकार वकील भवानी फोन्सेका ने वोट के बाद ट्वीट किया कि प्रस्ताव के विफलता ने राष्ट्रपति राजपक्षे की रक्षा करने वाले सांसदों को बेनकाब कर दिया।
नए प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की नियुक्ति के बाद मंगलवार को पहली बार संसद की बैठक हुई, क्योंकि देश अपने अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट के बीच बड़े संवैधानिक सुधार करने के लिए तैयार है। सुमनथिरन जिन्होंने प्रस्ताव पेश किया, बहस को जारी रखने के लिए संसद के स्थायी आदेशों को निलंबित करना चाहते थे। हालांकि, सरकार ने स्थायी आदेशों को निलंबित करने पर आपत्ति जताई। इसके बाद अध्यक्ष ने स्थायी आदेशों को निलंबित करने के प्रश्न पर मतदान का आदेश दिया।
सत्तारूढ़ दल के कुछ 78 नेताओं ने संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया है। विपक्ष ने कहा, शुक्रवार को नाराजगी का प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। राजपक्षे सरकार ने जैविक खेती के पक्ष में रासायनिक उर्वरक आयात पर प्रतिबंध लगाने और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर रुख करने का विरोध करने जैसे कुछ मनमाने फैसले लिए थे, जिसके कारण 1948 में ब्रिटेन से आजादी के बाद से देश का सबसे खराब आर्थिक संकट पैदा हुआ था।
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