यूएन में अमेरिका और रूस के बीच तनातनी
संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के इस्तेमाल और उनके प्रभाव को लेकर अमेरिका एवं उसके सहयोगियों और रूस एवं चीन के बीच सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तनातनी हो गई।
![]() संयुक्त राष्ट्र |
परिषद के अध्यक्ष रूस की मेजबानी में ‘प्रतिबंध संबंधी सामान्य मामले : उनके मानवीय और अनपेक्षित परिणामों को रोकना’ विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की खुली बहस आयोजित की गई, जिसमें रूस ने अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य देशों एवं समूहों द्वारा लागू किए गए ‘एकतरफा प्रतिबंधों’ की ¨नदा की। संयुक्त राष्ट्र की राजनीतिक प्रमुख रोजमेरी ए डिकालरे ने परिषद से कहा कि 14 संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध व्यवस्थाएं हैं।
उदाहरणार्थ वे लीबिया, माली, दक्षिण सूडान और यमन में संघर्ष के समाधान को सहयोग देती हैं, गिनी बिसाऊ में उनका उद्देश्य सरकार के असंवैधानिक परिवर्तनों को रोकना है, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, कांगो और सोमालिया में वे प्राकृतिक संसाधनों के अवैध दोहन पर अंकुश लगाती हैं, उत्तर कोरिया में उनका मकसद हथियारों के प्रसार पर रोक लगाना है और वे इस्लामिक स्टेट और अलकायदा के आतंकवादी खतरों पर रोक लगाती हैं।
डिकालरे ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों में 1990 के दशक के बाद से कई बदलाव लाए गए हैं, ताकि इनके आम नागरिकों और तीसरे देशों पर न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव पड़े और सुरक्षा परिषद की अधिकतर प्रतिबंध व्यवस्थाओं में मानवीय छूट को शामिल किया गया है और यह छूट मुहैया कराई गई है। संयुक्त राष्ट्र में बैठक की अध्यक्षता कर रहे रूस के उपराजदूत दमित्री पोलियांस्की ने कहा कि कई प्रतिबंध व्यवस्थाएं राष्ट्र निर्माण और आर्थिक विकास की योजनाओं में हस्तक्षेप करती हैं।
उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद को उन्हें हटाने के लिए अधिक यथार्थवादी मापदंड तय करने चाहिए, ताकि उन्हें हटवाना ‘कोई असंभव मिशन’ नहीं बन जाएं। इस बीच, संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने कहा कि प्रतिबंध एक ऐसा कारगर तरीका है, जिसके कारण ‘आतंकवादियों के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पण्रालियों के जरिए धन एकत्र करना मुश्किल हो जाता’ है और उसने उत्तर कोरिया के परमाणु एवं बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रमों की ‘कुछ क्षमताओं’ के विकास की गति को धीमा किया है।
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