भारत ने संयुक्त राष्ट्र को आगाह किया, शांतिरक्षण की मौजूदा रणनीति त्रासदी की ओर
शांतिरक्षण अभियान को लागू करने के लिए उपलब्ध अपर्याप्त संसाधनों पर चिंता जताते हुए भारत ने आगाह किया है कि शांतिरक्षकों से ‘कम संसाधनों में अधिक काम करने’ के लिए कहना एक ऐसी रणनीति है जो हमें त्रासदी की ओर बढ़ा रही है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि राजदूत सैयद अकबरुद्दीन (file photo) |
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र मिशन में तैनात एक भारतीय शांतिरक्षक के हमले में घायल होने के एक दिन बाद संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने सुरक्षा परिषद की एक परिचर्चा में इस बात को रेखांकित किया कि अफ्रीका में शांतिरक्षण मिशन बहुत विस्तृत क्षेत्र में काम कर रहे हैं। सुरक्षा परिषद का ध्यान कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के संवेदनशील इलाकों में तैनात शांतिरक्षकों के सामने आ रहे हालात की ओर दिलाते हुए अकबरुद्दीन ने कहा कि देश का मध्य क्षेत्र 5 लाख वर्ग किमी से ज्यादा है जहां कुल क्षेत्रफल 23.4 लाख वर्ग किलोमीटर है।
मध्य क्षेत्र में 1.1 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं जहां कुल आबादी 8.15 करोड़ है। उन्होंने कहा, विशाल क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षण अभियानों की जिम्मेदारी चार बटालियनों पर हैं जिनमें केवल करीब 3000 जवान हैं। इस हिसाब से 158 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की जिम्मेदारी एक जवान पर है। ‘अफ्रीका में शांतिरक्षण अभियानों को मजबूत करने’ संबंधी परिचर्चा में अकबरुद्दीन ने कहा, यदि इस तरह के माहौल में हम नागरिकों की सुरक्षा के लिए तैनात जवानों को जरूरी संसाधन दिए बिना त्वरित प्रवर्तन अभियानों का काम सौंपते हैं तो जाहिर है कि संयुक्त राष्ट्र की तैनाती का आकार और मानदंड दिए गए काम के लिहाज से अपर्याप्त है। कम संसाधनों में शांतिरक्षकों से ज्यादा काम कराने की रणनीति हमें त्रासदी की ओर बढ़ा रही है।
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