Ravivar vrat katha : रविवार को करें सूर्य भगवान का व्रत, सारे दुखों का हो जाएगा नाश

Last Updated 01 Oct 2023 11:35:41 AM IST

रविवार का व्रत करने से सभी ग्रह अपना अशुभ फल देना समाप्त कर देते हैं जिससे इंसान के जीवन में खुशहाली आती है।


Ravivar vrat katha

Ravivar vrat katha in hindi - धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हफ्ते के सात दिन किसी ना किसी गृह से सम्बंधित होते हैं। रविवार का दिन भगवान् सूर्य से सम्बंधित है। इसीलिए इस दिन रविवार कहते हैं। सम्पूर्ण पृथ्वी को प्रकाश देने वाले भगवान् सूर्य सभी ग्रहों के राजा हैं। सूर्य के उदय के साथ नया दिन शुरू होता है और अस्त होने पर रात। यही घटनाक्रम इस ब्रह्मांड को चलाता है। सूर्य को सभी ग्रहों का राजा कहा गया है। यदि सूर्य ग्रह आपका मजबूत या अनुकूल है तो आपके जीवन सुखमय होगा और आपका जीवन सदैव खुशियों से भरा रहेगा। रविवार का व्रत करने से सूर्य देव बहुत प्रसन्न होते हैं और जातक पर अपनी कृपा बरसाते हैं। रविवार का व्रत करने से सभी ग्रह अपना अशुभ फल देना समाप्त कर देते हैं जिससे इंसान के जीवन में खुशहाली आती है। शास्त्रों में रविवार के व्रत की महिमा बताई गयी है। धार्मिक मान्यतों के अनुसार रविवार का व्रत करने से सूर्य ग्रह के कारण जीवन में आ रहे कष्टों से मुक्ति मिलती है। आइये जानते हैं व्रत की विधि और इसका महत्व

रविवार व्रत का महत्व - Ravivar vrat ka mahatva
सनातन धर्म में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है। शास्त्रों में सूर्य को साक्षात् भगवान कहा गया है जो सुबह की पहली किरण के साथ पूरी दुनिया को प्रकाशमय कर देते हैं। रविवार व्रत का एक विशेष महत्व है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से मनुष्य के जीवन में आ रही सभी विपत्तियों का नाश होता है। इस व्रत को करने से सभी ग्रह शांत हो जाते हैं और शुभ प्रदान करना शुरू कर देते हैं। इस व्रत को पूर्ण निष्ठा के साथ करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। पिता पुत्र के आपसी सम्बन्ध मजबूत होते हैं। नौकरी में दिन प्रतिदिन तरक्की मिलती है। यह व्रत आरोग्य, सौभाग्य और दीर्घायु देता है। यदि किसी का कोर्ट केस चल रहा हो तो उसमे विजय हासिल होती है। यह व्रत शत्रु पर विजय प्राप्त कराने वाला है। इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति के भी योग बनते हैं। नेत्र व्याधि, चर्म रोग, कुष्ठ रोग रविवार के व्रत से कोसों दूर भागते हैं। विदेश यात्रा करना चाहते हैं तो रविवार के व्रत जरूर करें।

रविवार व्रत कथा  - Ravivar vrat katha in hindi
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत की कथा इस प्रकार है। प्राचीन काल में एक बुढ़िया थी। वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती थी। रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर अपने घर के आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती थी। उसके बाद वह भगवान सूर्य की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुन कर सूर्य देव को भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती थी। सूर्य भगवान की कृपा से उस बुढ़िया को किसी प्रकार की कोई चिन्ता व कष्ट नहीं था। भगवान् सूर्य की कृपा से धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था। उस बुढ़िया को सुखी व समृद्ध होते देखकर उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी थी। बुढ़िया के पास कोई गाय नहीं थी। इसलिए वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। लेकिन पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया।

सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी प्यासी सो गई। रात्रि में सूर्य भगवान ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और उससे व्रत न करने तथा उन्हें भोग न लगाने का कारण पूछा। बुढ़िया ने बहुत ही करुण स्वर में पड़ोसन के द्वारा घर के अन्दर गाय बांधने और गोबर न मिल पाने की बात कही। सूर्य भगवान ने अपनी अनन्य भक्त बुढ़िया की परेशानी का कारण जानकर उसके सब दुःख दूर करते हुए कहा, “हे माता, तुम प्रत्येक रविवार को मेरी पूजा और व्रत करती हो। मैं तुमसे अति प्रसन्न हूं और तुम्हें ऐसी गाय प्रदान करता हूं जो तुम्हारे घर-आंगन को धन-धान्य से भर देगी। तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। रविवार का व्रत करनेवालों की मैं सभी इच्छाएं पूरी करता हूं। मेरा व्रत करने व कथा सुनने से बांझ स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है। निर्धनों के घर में धन की वर्षा होती है। शारीरिक कष्ट नष्ट होते हैं। मेरा व्रत करते हुए प्राणी मोक्ष को प्राप्त करता है।“  स्वप्न में उस बुढ़िया को ऐसा वरदान देकर सूर्य भगवान अन्तर्धान हो गए। प्रातःकाल को सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुन्दर गाय और बछड़े को देखकर हैरान हो गई। गाय को आंगन में बांधकर उसने गाय को चारा खिलाया। पड़ोसन उस बुढ़िया के आंगन में बंधी सुन्दर गाय और बछड़े को देखकर और जलने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया।

गोबर को देखते ही पड़ोसन हैरान रह गई और उस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरन्त उस गोबर को उठाया और अपने घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी और बुढ़िया के उठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाकर ले जाती थी। बहुत दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। बुढ़िया पहले की तरह हर रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही। लेकिन सूर्य भगवान को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने गाय को घर के भीतर बांध दिया। सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी। सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही दिन में बहुत धनी हो गई। उस बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन बुरी तरह ईर्ष्या करने लगी और उसने अपने पति को समझाकर उस नगर के राजा के पास भेज दिया। राजा को जब बुढ़िया के पास सोने के गोबर देने वाली गाय के बारे में पता चला तो उसने अपने सैनिक भेजकर बुढ़िया की गाय लाने का आदेश दिया। सैनिक उस बुढ़िया के घर पहुचे। उस समय बुढ़िया सूर्य भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करने वाली थी। राजा के सैनिकों ने गाय और बछड़े को खोला और अपने साथ महल की ओर ले चले। बुढ़िया ने सैनिकों से गाय और उसके बछड़े को न ले जाने की प्रार्थना की, लेकिन राजा के सैनिक नहीं माने। गाय व बछड़े के चले जाने से बुढ़िया को बहुत दुःख हुआ। उस दिन उसने कुछ नहीं खाया और सारी रात सूर्य भगवान से गाय व बछड़े को लौटाने के लिए प्रार्थना करती रही।

सुन्दर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उधर सूर्य भगवान को भूखी प्यासी बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत दया आई। उसी रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा, राजन ! बुढ़िया की गाय व बछड़ा तुरन्त लौटा दो, नहीं तो तुम पर विपत्तियों- का पहाड़ टूट पड़ेगा। तुम्हारे राज्य में भूकम्प आएगा। तुम्हारा महल नष्ट हो जाएगा। सूर्य भगवान के स्वप्न से डरे सहमे राजा ने प्रातः उठते ही गाय और बछड़ा बुढ़िया को लौटा दिया। राजा ने बहुत-सा धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा भी मांगी। राजा ने पड़ोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दण्ड भी दिया। फिर राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि सभी स्त्री और पुरुष रविवार का व्रत किया करें। रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन धान्य से भर गए। सभी लोगों के शारीरिक कष्ट दूर हो गए। जिन लोगों के संतान नहीं थी उन्हें पुत्रों की प्राप्ति होने लगी और राज्य में सभी लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।

रविवार व्रत विधि - Ravivar vrat vidhi

  • अमृत काल में उठें और स्नान आदि करके शरीर को पवित्र करें।
  • इसके बाद तांबे के लोटे में जल भर लें।
  • इस लोटे में पानी में रोली, लाल पुष्प, अक्षत, दूर्वा आदि मिलाएं।
  • तत्पश्चात भगवान् सूर्य को अर्घ दें।
  • अर्घ देते समय सूर्य देव के मंत्रों से सूर्य देव की उपासना करें या फिर नीचे दिया गया मंत्र बोलकर सूर्य को अर्घ दें।
  • नमः सहस्रांशु सर्वव्याधि विनाशन गृहणाघ्र्यमय दत्तं संज्ञा सहितो रवि।।
  • अर्घ देने से पूर्व ‘ॐ  ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ मंत्र का कम से कम पांच माला जप करना चाहिए।
  • इसके बाद लाल चंदन, कुमकुम या रोली का तिलक लगाकर रविवार व्रत कथा पढ़ें।
  • इस बात का ध्यान रखें कि रविवार व्रत में इलायची मिश्रित गुड़ का हलवा, गेहूं की रोटियां, गुड़ का दलिया सूर्यास्त से पहले भोजन के रूप में ग्रहण करना चाहिए।
  • यदि किसी कारणवश आप ऐसा ना कर पाएं और सूर्य अस्त हो जाए तो दूसरे दिन सूर्य उदय हो जाने पर अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करें।
  • भोजन में सर्वप्रथम सात कौर गुड़ का हलवा या दलिया और फिर अन्य पदार्थ ग्रहण करना चाहिए।
  • इस दिन नमक और तेलयुक्त भोजन नहीं करना चाहिए।
  • अंतिम रविवार को आम या अर्क की समिधा से हवन कर किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और श्रद्धा अनुसार वस्त्र और दक्षिणा दें और ब्राह्मण का आशीर्वाद लें।

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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