Ganesh Chaturthi Vrat Katha: गणेश चतुर्थी व्रत में कथा सुनने से दूर होंगे संकट, मिलेगा बप्पा का आशीर्वाद

Last Updated 18 Sep 2023 11:41:16 AM IST

गणेश जी की पूजा करने से भक्त को अपार सुख-समृद्धि, यश व कीर्ति की प्राप्ति होती है। गणेश चतुर्थी पर गणेश जी का पूजन करने के बाद उनकी व्रत कथा सुनना काफी लाभकारी होता है। पढ़ें गणेश चतुर्थी व्रत कथा


Ganesh Chaturthi Vrat Katha

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, कोई भी व्यक्ति शुभ कार्य को सफल व निर्विघ्न बनाने के लिए सबसे पहले भगवान श्री गणेश जी की पूजा-अर्चना करता है। गणेश जी को यह वरदान मिला हुआ है कि कोई भी व्यक्ति जब भी शुभ काम करने जाएगा तो उसको सफल बनाने के लिए श्री गणेश जी की अराधना करना आवश्यक है, अन्यथा वह काम या पूजा असफल मानी जाती है। गणेश जी की पूजा करने से भक्त को अपार सुख-समृद्धि, यश व कीर्ति की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार,चतुर्थी वाले दिन श्री गणेश जी का पूजन करने के बाद उनकी व्रत कथा सुनना काफी लाभकारी होता है। इस व्रत कथा को पढ़ने व सुनने से भक्त के सारे संकट व दुखों का निवारण हो जाता है। तो आइए जानते हैं कि कौन-सी व्रत कथा को पढ़ने व सुनने से मिलता है लाभ, सुख-समृद्धि, यश व कीर्ती।

Ganesh Chaturthi Vrat Katha
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार की बात है, जब सभी देवता संकट से घिर गए थे। वे सभी संकट से बाहर निकलने के लिए सहायता मांगने के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे। उस वक्त भगवान शंकर और माता पार्वती के साथ उनके दोनों सुपुत्र भगवान कार्तिकेय और श्री गणेश भी वहां पर मौजूद थे। देवताओं ने अपनी सारी व्यथा शंकर भगवान को सुना डाली। उनके कष्ट व परेशानी को सुनकर शिवजी ने दोनों पुत्रों से प्रश्न किया कि तुम दोनों में से कौन देवताओं की सहायता कर सकता है।

शिवजी के दोनों पुत्रों ने हां के जबाव में सिर हिलाकर खुद को इसके योग्य बता दिया था। दोनों के हां कहने पर भगवान शंकर दुविधा में आ गए। इस पहेली को सुलझाने के लिए शिवजी ने कहा कि दोनों में से जो सर्वप्रथम पूरी धरती का चक्कर लगाकर आएगा, केवल वही देवताओं की मदद करने के लिए वास्तव में योग्य होगा। पिता की बात सुनकर भगवान कार्तिकेय अपने प्रिय वाहन मोर पर विराजमान होकर पृथ्वी की परिक्रमा लगाने के लिए निकल पड़े, किंतु भगवान गणेश सोचने लगे कि अपने वाहन मूषक राजा अर्थात चूहे की मदद से परिक्रमा लगाना तो काफी कठिन है और इसमें बहुत अधिक वक्त भी व्यतीत होगा।

काफी देर सोच-विचार करने के पश्चात उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश जी अपने स्थान से उठे और पिता शिव व माता पार्वती की ही सात बार परिक्रमा करके दोबारा अपनी जगह पर बैठ गए। जब भगवान कार्तिकेय परिक्रमा खत्म कर वापस लौटकर आए और उन्होंने गणेश जी को बैठा पाया तो अपने आप को विजयी मानने लगे। इस सबके बाद जब शंकर भगवान ने गणेश जी से पृथ्वी की परिक्रमा ना लगाने की वजह पूछी तो भगवान गणेश जी ने उत्तर के स्वर में कहा कि 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक होता है।' उनका यह जवाब सुनकर वहां मौजूद सभी देवतागण व अन्य लोग चकित हो गए। इतना सुनते ही पिता भगवान शिवजी ने उनको देवताओं की सहायता करने की अनुमति दी और साथ ही वरदान दिया कि हर चतुर्थी वाले दिन जो भक्तगण तुम्हारी पूजा करेगा और चंद्रमा को अर्ध्य देगा, उसके सभी कष्टों का निवारण होगा। साथ ही उस भक्त के घर में खुशहाली आएगी व उसे उन्नति के मार्ग पर जाने का आशीर्वाद भी मिलेगा।  
 

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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