Surya Ashtakam : ग्रह दोषों से मुक्ति पाने के लिए करें सूर्य अष्टकम का पाठ, मिलेंगे कई लाभ

Last Updated 15 Sep 2023 12:54:30 PM IST

सभी ग्रहों का राजा सूर्य देव को कहा गया है। कहते हैं कि सिर्फ सूर्य देव की पूजा- उपासना करने से कुंडली में मौजूद सभी ग्रह दोषों से मुक्ति मिल जाती है। उन्हीं की ऊर्जा से सारे संसार के कार्य पूर्ण होते हैं इसलिए ग्रह दोषों से मुक्ति पाने के लिए करे सूर्य अष्टकम का पाठ


सभी ग्रहों का राजा सूर्य देव को कहा गया है। कहते हैं कि सिर्फ सूर्य देव की पूजा- उपासना करने से कुंडली में मौजूद सभी ग्रह दोषों से मुक्ति मिल जाती है।  सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही हैं। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है,यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक। ऋग्वेद के देवताओं में सूर्यदेव का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही हैं।

सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है और उन्हीं को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते हैं। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे जिसके चलते सूर्य देवता की विशेष महत्ता मानी जाती है। इसी के चलते सूर्यदेव को हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक प्रभावशाली देवता माना जाता है।

मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जिस भी व्यक्ति के करियर में रुकावटें उत्पन्न होती हैं उन्हें सूर्यदेव की आराधना करनी चाहिए। इसके साथ ही रोज़गार की चाह रखने वाले यदि हर रविवार दूध, भात, मिश्री से सूर्य देव का पूजन करें तो सात रविवार के बीच ही उनकी नौकरी लगने की संभावना रहती है। पुराणों में सूर्य देव की आराधना के लिए श्री सूर्य अष्टकम, सूर्याष्टकम् का उल्लेख किया गया है। इनका पूजन पूरे मन से किया जाना चाहिए। इसके साथ ही जल्दी उठकर स्नान के बाद पाठ किया जाए तो जल्दी फल मिलने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। पुराणों में इस पाठ को तुरंत फल देने वाला बताया गया है।  सूर्य  भगवान पूरे जगत की ऊर्जा और शक्ति के भंडार हैं, उन्हीं की ऊर्जा से सारे संसार के कार्य पूर्ण होते हैं।

श्री सूर्य अष्टकम  (Shri Surya Ashtakam)

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।

दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥1॥

सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।

श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥2॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥3॥

त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥4॥

बृहितं तेजः पुञ्ज च वायु आकाशमेव च ।

प्रभुत्वं सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।

एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥6॥

तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम् ।

महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥7॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानप्रकाशमोक्षदम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम् ।

अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ॥9॥

अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने ।

सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता ॥10॥

स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने ।

न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति ॥11॥

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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