Pitru paksha 2023: श्राद्ध करते समय इन खास नियमों का करें पालन, मिलेगा अनंत फल

Last Updated 15 Sep 2023 11:49:55 AM IST

प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष प्रारंभ हो जाता है। यह श्राद्ध पुरुषों द्वारा किया जाता है। श्राद्ध में कुछ खास नियमों का पालन किया जाता है। इन नियमों का पालन करने से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।


लोग अपने पूर्वजों को मृत्यु-उपरांत भूल न जाएं इसलिए धर्म ग्रंथों में प्रत्येक वर्ष उनकों याद करने के लिए श्राद्ध करने की बात कही गई है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष प्रारंभ हो जाता है। यह श्राद्ध पुरुषों द्वारा किया जाता है इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र के महत्व को बताया गया है। भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं, जिसमे हम अपने पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक याद करते हैं।

ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर धरती पर किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के बीच में रहने के लिए आते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध करने की कुछ खास तिथियां भी होती हैं। पितरों की पूजा करने से आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, धान्य की समृद्धि होती है। पितरों का श्राद्ध करते समय कुछ खास नियमों का पालन करना चाहिए। इन नियमों का पालन इसलिए किया जाता है ताकि आपके द्वारा किया गया श्राद्ध बेकार न हो। तो आइए जानते हैं क्‍या हैं ये नियम।

Pitru paksha ke niyam in hindi

• तर्पण व श्राद्ध के लिए शास्त्रों के अनुसार कुतुप बेला में जो समय होता है,उसी समय श्राद्ध करना चाहिए। पितरों का तर्पण करने का मतलब उन्हें जल देना होता है। कुतुप बेला दिन प्रात:काल 11:36 से 12:24 बजे तक के समय को कहते हैं, यानी कि श्राद्ध हमेशा दोपहर के समय ही करना चाहिए।
• श्राद्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके किया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि पितर-लोक दक्षिण दिशा में निवास करते हैं।
• पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें।
• सबसे पहले अपने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प, तिल लेकर दोनों हाथ जोड़कर अपने पितरों का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करना चाहिए। नदी के किनारे तर्पण करना विशेष महत्व रखता है। अपने पितरों को नाम लेते हुए उसे ज़मीन में या नदी में प्रवाहित करें।
• पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद कर श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध उसी तिथि को किया जाना चाहिए जिस तिथि को पितर परलोक गए थे। श्राद्ध न केवल पितरों की मुक्ति के लिए किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति को  अपने पूर्वजों की तिथि का पता नहीं है, तो वह अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकता है।
• जिस दिन श्राद्ध करें उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें। श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें।
• पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तन, केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग कर सकते हैं।
• श्राद्ध या तर्पण करते समय काले तिल का प्रयोग करना चाहिए।
• पितृ पक्ष में बाल नहीं काटने चाहिए ऐसा करने से धन की हानि होती है। जो लोग पितृ पक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण करते हैं उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
• शास्त्रों के अनुसार पिंडदान और ब्राह्मण भोज का भोग लगाकर पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। पंचबली भोजन का विशेष महत्व है।
• पितृपक्ष के दौरान पूरे 15 दिनों तक घर में सात्विक माहौल होना चाहिए। इस दौरान घर में मांसाहारी भोजन नहीं बनाना चाहिए।
• पितृपक्ष में किसी का निरादर न करें। कुत्ते, बिल्ली को मारना नहीं चाहिए।
• श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए।
• पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध सदैव अपने ही घर में या फिर अपनी ही भूमि में करना चाहिए। दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
• वन, पर्वत, तीर्थस्‍थान एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत:इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।
• धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितृ पक्ष में पंचबली के माध्यम से पांच विशेष प्रकार के जीवों को श्राद्ध का बना भोजन करायें। पंचबली के लिए सबसे पहला भोजन गाय के लिए निकाला जाता है जिसे गो बलि कहते हैं।
• दूसरा ग्रास या भोजन कुत्ते को देते हैं जिसे श्वान बलि के कहते हैं। तीसरा ग्रास कौआ जिसे काक बलि कहते हैं। चौथा ग्रास देव बलि होता है जिसे जल में प्रवाहित कर देते हैं। अंतिम और पांचवां ग्रास चीटियों के लिए सुनसान जगह पर रख देना चाहिए जिसे पिपीलिकादि बलि के नाम से जाना जाता है।
 

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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