आदत

Last Updated 11 Jul 2022 09:30:52 AM IST

आदतों को आरम्भ करने में तो कुछ भी नहीं करना पड़ता है पर वे बिना किसी कारण के भी क्रियान्वित होती रहती हैं।


श्रीराम शर्मा आचार्य

इतना ही नहीं, कई बार तो ऐसा भी होता है कि मनुष्य आदतों का गुलाम हो जाता है, और कोई विशेष कारण न होने पर भी उपयुक्त-अनुपयुक्त आचरण करने लगता है। बाद में स्थिति ऐसी बन जाती है कि उस आदत के बिना काम ही नहीं चलता। आलसियों और गंदगी पसन्द लोगों के कुटेवों को लोग नापसन्द भी करते हैं, और इनके लिए टीका-टिप्पणी भी करते हैं। पर अभ्यस्त व्यक्ति को यह प्रतीत ही नहीं होता कि उसने कोई ऐसी आदत पाल रखी है, जिसे लोग नापसन्द करते हैं, और बुरा मानते हैं।

अच्छी आदतों के संबंध में यह बात है। साफ-सुथरे रहना, किफायत बरतना और किसी न किसी उपयोगी काम में लगे रहना, न होने पर प्रयत्नपूर्वक सौंपा हुआ काम कर लेना, एक प्रकार की अच्छी आदत ही है, जो आपके व्यक्तित्व का वजन बढ़ाती है। कुछ न कुछ उपयोगी प्रक्रिया बन पड़ने पर अनायास ही सहज श्रेय प्राप्त होता है।

तिनके-तिनके इकट्ठे करने पर मोटा या मजबूत रस्सा बन जाता है। अच्छी या बुरी आदतों के संबंध में भी ऐसी बात है। आरम्भ में वे अनायास ही आरम्भ हो जाती हैं, और थोड़ा सा प्रयत्न करने, कुछ बार दुहरा देने भर से मन:स्थिति अनुकूल बन जाती है। स्वभाव का अंग बन जाने पर समूचे व्यक्तित्व को ही उस ढांचे में ढाल लेती हैं। अच्छी आदतों का अभ्यास किया जाए तो व्यक्तित्व सुणी स्तर का बन जाता है। दूसरों के मन में अपने लिए सम्मानजनक स्थान बना लेता है। उसे सभ्य या शिष्ट माना जाता है।

उसके संबंध में लोग और भी अच्छे सुणों की मान्यता बना लेते हैं। उसके कार्यों में सहयोग करने लगते हैं, या अवसर मिलते ही उसे अपना सहयोगी बना लेते हैं। सहयोग या असहयोग ही किसी की उन्नति या अवनति का प्रमुख कारण है। अच्छी आदतें फलत: अपना हित साधन करती हैं। इनका देर-सबेर में उपयोगी लाभ मिलता है।

इसके विपरीत बुरी आदतों से प्रत्यक्षत: और परोक्षत: निकट भविष्य में हानि ही उठाने की आशंका रहती है। कहा भी जाता है कि पहले आप आदतों को बनाते हैं, फिर वे आपको बनाती हैं। इसलिए जरूरी हो जाता है कि बराबर सचेत रहें और गलत आदतों को अपने भीतर जगह बनाने ही न दें।



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