बराबरी

Last Updated 13 Apr 2022 12:26:26 AM IST

मुझे समझ में नहीं आता कि हमारा सारा फोकस सिर्फ महिलाओं पर ही क्यों है?


सद्गुरु

शायद इसलिए क्योंकि हम मानते हैं कि वे या तो सही हो सकती हैं या गलत, और पुरु ष तो हमेशा सही ही होते हैं। आपको समझना होगा कि प्रकृति ने महिलाओं को बड़ी जिम्मेदारी दी है, चाहे वह बच्चे को जन्म देने की बात हो या बच्चे की शुरुआती जीवन को प्रभावित करने की बात हो। यह मत समझिए कि यह बात सिर्फ  प्रजनन तक है, आज हम और आप यहां हैं तो इसी वजह से हैं। अगर आपका जन्म सामान्य तरीके से हुआ है तो इसका मतलब है कि हमारा जीवन एक महिला के शरीर में ही शुरु  हुआ है। आज हम महिला या पुरु ष होने का जो बायोलॉजिकल (शारीरिक) पहलू है, उसे कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा रहे हैं।

मेरा कहना है कि जब आप सड़क पर चल रहे हों तो आपको इस बात की चिंता क्यों होनी चाहिए कि सामने वाला व्यक्ति स्त्री है पुरु ष? यह चीज सिर्फ  बाथरूम या बेडरूम में ही मायने रखती है, बाकी किसी जगह इस बात का कोई महत्त्व नहीं होता। सड़क पर, काम करने की जगह पर या फिर हम कहीं भी हों, वहां इस बात का फर्क क्यों पड़ना चाहिए कि कोई व्यक्ति स्त्री है या पुरुष। आप उन्हें सिर्फ  इंसान के तौर पर क्यों नहीं देख सकते? मुझे लगता है कि हम लोगों ने बहुत ज्यादा इस विषय को फोकस दे दिया है, जिसने बेहद अस्वस्थ माहौल बना दिया है।

इसका मतलब हुआ कि हम लगातार शारीरिक अंगों से बहुत ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। इसीलिए हम लोगों को उनके लिंग से पहचान रहे हैं। लोगों को आप उनकी बुद्धि से नहीं, उनकी काबिलियत से नहीं, उनकी क्षमता से नहीं, बल्कि उनके लिंग से पहचान रहे हैं। दुनिया को देखने का यह तरीका ठीक नहीं है। हमारे जीवन के कुछ पहलुओं के लिए लिंगगत पहचान महत्त्वपूर्ण होती है, लेकिन जीवन के बाकी हिस्से में ज्यादा अहम यह होता है कि आप कितने योग्य हैं।

लिंग से पहचानना जीवन के कुछ खास रिश्तों के लिए जरूरी होती है। बाकी रिश्तों में लिंग से पहचानने की बात तो बीच में आनी ही नहीं चाहिए। तभी दोनों के बीच समानता होगी। औरतों के अधिकारों को लेकर बात करने की कोई जरूरत नहीं है। इसकी जगह हमें मानव अधिकारों की बात करनी चाहिए और महिलाएं भी इसका हिस्सा हैं।



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