त्याग-प्रेम
आप प्रेमी बनना चाहते हैं, तो पवित्र प्रेम का अभ्यास पहिले अपने घर से आरंभ कीजिए।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
कहा जाता है कि चैरिटी बिगन्स एट होम यानी कोई भी अच्छी शुरुआत घर से की जाए तो सफलता में संदेह नहीं रहने पाता। इसलिए कह सकते हैं कि प्रेम की प्रारंभिक पाठशाला अपना घर ही हो सकता है। तो शुरुआत यहां से ही की जाए कि घर के समस्त स्री-पुरु षों, बालक-बालिकाओं से नि:स्वार्थ प्रेम करिए। फिर देखिए कि बदले में कितना अधिक प्रेम आपको प्राप्त होता है।
जान लेना चाहिए कि प्रेम का अर्थ है-त्याग और सेवा। आप घर के हर एक व्यक्तिके पक्ष में स्वाथरे को छोड़िए और जिसे जिसकी आवश्यकता है, उसे वह प्रदान कीजिए। वृद्ध परिजन आप से शारीरिक सेवा चाहते हैं, बालक आप के साथ हंसना-खेलना चाहते हैं, भाइयों को आपका आर्थिक सहयोग और समर्थन चाहिए, स्त्री को आपके स्नेहपूर्ण वार्तालाप की आवश्यकता है। जो जिस वस्तु को चाहता है, उसे वह प्रदान कीजिए परंतु ध्यान रखिए प्रेम कोई व्यापार नहीं है।
एक हाथ से देकर दूसरे हाथ से मांगने की नीति प्रेमी को शोभा नहीं दे सकती। वृद्धों से आप आशा मत करिए कि वे आपकी प्रशंसा करें। न भाइयों से यह चाहिए कि कमाऊ होने के नाते आपको कुछ अधिक महत्त्व दें। स्त्री यदि आपकी इच्छानुसार सेवा-सुभूषा करने में असमर्थ है, तो उस पर झुंझलाएं मत, क्योंकि आप प्रेमी बनने जा रहे हैं। कहना न होगा कि प्रेमी देकर मांग नहीं सकता। दुनिया में सारे झगड़ों की जड़ यह है कि हम देते कम हैं, और मांगते ज्यादा हैं। ऐसा करने की बजाय हमें करना यह चाहिए कि दें बहुत और बदला बिल्कुल न मांगें या बहुत कम पाने की आशा रखें। यह नीति ग्रहण करते ही हमारे आसपास के सारे झगड़े ही मिट जाते हैं। प्रेमी त्याग करता है-उसका त्याग बेकार नहीं जाता, वरन हजार होकर लौट आता है।
झगड़ा करने पर जितना बदला मिलता है, उससे अनेक गुना उसे बिना मांगे मिल जाता है। कदाचित कुछ कम भी मिले तो प्रेम से उत्पन्न होने वाले आंतरिक आनंद के मुकाबिले में वह कमी नगण्य है। शून्यता का भाव नहीं रहता। निरंतर देते रहने का स्वभाव जिसके हृदयों में स्थान कर लेता है, वे जानते हैं कि स्वर्गीय निर्धन आत्माएं हष्रान्दोलित करने में कितनी समर्थ हैं। त्याग की दैवी वृत्तियां हमारे आसपास के वातावरण को स्वर्गीय संपदाओं से भर देती हैं।
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