भावनाओं से मित्रता

Last Updated 25 Jan 2022 04:51:55 AM IST

कहीं न-कहीं यह भय है जो मुझे बंद कर देता है, और कठोर और हताश, क्रोधित और आशाहीन बना देता है।


आचार्य रजनीश ओशो

यह इतना सूक्ष्म है कि मैं वस्तुत: उसे छू नहीं सकता। मैं अधिक स्पष्टता से कैसे देख सकता हूं? कहीं-न-कहीं यह भय है, जो मुझे संकीर्ण, कठोर, दु:खी, हताश, क्रोधित और आशाहीन कर जाता है। और यह इतना सूक्ष्म लगता है कि मैं किसी तरह भी इससे संबंधित नहीं हो पाता। मैं इसको और अधिक स्पष्टता से कैसे देख सकता हूं? उदासी, चिंता, क्रोध, क्लेश और हताशा, दुख के साथ एकमात्र समस्या यह है कि तुम इन सबसे छुटकारा  पाना चाहते हो। यही एकमात्र बाधा है। तुम्हें इनके साथ जीना होगा। तुम इन सबसे भाग नहीं सकते। यही वे सारी परिस्थितियां हैं, जिनमें जीवन केंद्रित होता है और विकसित होता है। यही जीवन की चुनौतियां हैं।

इन्हें स्वीकार करो। ये छुपे हुए वरदान हैं। अगर तुम इन सबसे पलायन करना चाहते हो, किसी भी तरह इनसे छुटकारा पाना चाहते हो, तब समस्या खड़ी होती है क्योंकि जब तुम किसी भी चीज से छुटकारा पाना चाहते हो, तब तुम उसे सीधा नहीं देख सकते। तब वे चीजें तुमसे छिपनी शुरू हो जाती हैं, क्योंकि तब तुम निंदात्मक हो; तब ये सारी चीजें तुम्हारें गहरे अचेतन मन में प्रवेश कर जाती हैं, तुम्हारे अंदर के किसी अंधेरे कोने में घुस जाती जहां तुम इसे देख नहीं सकते। तुम्हारे भीतर के किसी तहखाने में ये छिप जाती। और स्वभावत: जितने भीतर ये प्रवेश करती है, उतनी ही समस्या उत्पन्न होती है क्योंकि तब वे तुम्हारे भीतर के किसी अनजाने कोने से कार्य करती है और तब तुम बिल्कुल ही असहाय हो जाते हो। तो पहली बात: कभी दमन मत करो। पहली बात : जो भी जैसा भी है, वैसा ही है।

इसे स्वीकार करो और इसे आने दो, इसे तुम्हारे सामने आने दो। वास्तव में  सिर्फ  यह कहना कि दमन मत करो, काफी नहीं है। और अगर मुझे इजाजत दो तो मैं कहूंगा कि ‘इसके साथ मित्रता करो।’ तुम्हें विषाद का अनुभव हो रहा है? इससे मैत्री करो। विषाद का भी अस्तित्व है, इसको आने दो, इसका आलिंगन करो, इसके साथ बैठो, उसका हाथ पकड़ो, उससे मित्रता करो, उससे प्रेम करो। विषाद भी सुंदर है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। तुमसे यह किसने कहा कि विषाद में कुछ गलत है?  हंसी बहुत उथली होती है और  प्रसन्नता त्वचा तक ही जाती है, पर विषाद हड्डियों के भीतर तक जाती है, मांस-मज्जा तक। विषाद से गहरा कुछ भी भीतर प्रवेश नहीं करता।



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