कठिनाई

Last Updated 27 Dec 2021 12:20:12 AM IST

अगर किसी को जीवन में महान बनना है, तो उसके लिए उसे बड़ी से बड़ी कठिनाई का सामना भी करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।


श्रीराम शर्मा आचार्य

साथ ही, महान बनने के बाद उस महानता को उसे हजम करने की कला भी आनी चाहिए क्योंकि  जो व्यक्ति अपने आपको जितना महान समझता है, उसके शत्रु भी उतने ही अधिक होते हैं। दरअसल, आज के दौर में किसी की सफलता को देख कर खुश होने वाले लोगों की संख्या अब पहले के समय जितनी नहीं रह गई है। दूसरों को सफल होते देख उनकी प्रशंसा करने का गुण पनपा तो तभी न जब माहौल में गलाकाट स्पर्धा का भाव इतना तीखा हो गया है।

महानता का भाव एक प्रकार का मानसिक रोग है। जो व्यक्ति अपने आपको महान समझता है, वह अंतर्मन से असंतुष्ट रहता है। उसके मन में भारी अंतद्र्वद्व जारी रहता है। वह बड़े-बड़े काम का आयोजन करता है। उसके सभी काम असामान्य होते हैं। वह संसार को ही गलत मार्ग पर चलते हुए देखता है और उसके सुधार करने की धुन में लग जाता है। महानता के भाव से प्रेरित कोई व्यक्ति अपने प्रतिद्वंद्वी पर भौतिक विजय प्राप्त करने की चेष्टा करता है, और कोई नैतिक। नैतिक विजय में वह अपने शत्रु को मित्र बनाने में भी समर्थ नहीं होता परंतु संसार में उसको पद पर से गिराने में समर्थ होता है।

इस प्रकार जितने लोगों को वह नैतिक दृष्टि से संसार में नीचा सिद्ध करने की चेष्टा करता है, वे सब उसके शत्रु बन जाते हैं। इन शत्रुओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है परंतु शत्रुओं की संख्या बढ़ती हुई देखकर उसे कोई आश्चर्य नहीं होता। वह समझता है कि उसके उच्चादर्श का समाज द्वारा विरोध होना स्वाभाविक ही है। जब तक इन शत्रुओं से लड़ने को वह अपने आप में सामथ्र्य पाता है, वह कुछ न कुछ रचनात्मक काम में लगा रहता है।

इस प्रकार वह संसार का कल्याण करने में समर्थ होता है पर जब अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की उसकी आशा निराशा में बदल जाती है, तो स्वाभाविक रूप से वह विक्षिप्त अथवा निराश पापी मनोवृत्ति का हो जाता है। इसलिए जीवन को बहुत ही संभल कर सावधानीपूर्वक जीना चाहिए जिससे आने वाली कठिनाइयों का अंत वह विवेकपूर्ण तरीके से कर सके। कहा भी जाता है कि एहतियात ही व्यक्ति का सुरक्षा कवच होती है।



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