छिछले संबंधों के पार
मैं जिस लड़की के साथ हूं उसके बारे में डर है। मुझे उसे खो देने का डर है और यह मुझे एक गहरा रिश्ता रखने से रोकता है।
आचार्य रजनीश ओशो |
शायद मैं अकेला हो जाने के डर से भयभीत हूं, या ऐसा ही कुछ। नहीं, डरो मत, गहरे जाओ। यह होगा क्योंकि जैसे ही तुम ज्यादा केंद्रित होते हो, तुम ज्यादा विश्रांत हो जाते हो, और तब रिश्ते में और ज्यादा गहरा जाने की संभावनाएं हैं। वास्तव में यह तुम हो जो रिश्ते में जा रहे हो। यदि तुम हो ही नहीं, चिंतित, असहाय, परेशान और खंड-खंड, तो कौन गहरा जाएगा?
क्योंकि हमारी खंडितता की वजह से, हम वाकई रिश्तों में गहरे जाने से भयभीत होते हैं, गहरे स्तरों पर, क्योंकि तब हमारी वास्तविकता दिखती है। तब तुम्हें अपना हृदय खोलना होगा, और तुम्हारा हृदय सिर्फ खंड-खंड बंटा है। तुम्हारे अंदर एक व्यक्ति नहीं है तुम एक भीड़ हो।
यदि तुम वाकई एक स्त्री से प्यार करते हो और तुम्हारा हृदय खुला हुआ है, वह सोचेगी कि तुम एक भीड़ हो, एक व्यक्ति नहीं यही डर है। इसीलिए लोग छिछले प्रेम संबंध रखते हैं। वे गहरे नहीं जाना चाहते; सिर्फ छू कर भागना चाहते हैं, सिर्फ सतह को छूना और गायब होना इससे पहले कि कोई प्रतिबद्धता हो। तब तुम केवल शरीरिक संबंध रख सकते हो और वे भी, दरिद्र किस्म के। ये सिर्फ सतही होते हैं।
सिर्फ किनारे मिलते हैं, लेकिन वह प्रेम बिल्कुल नहीं है। शायद शारीरिक स्खलन, एक रेचन, लेकिन उससे ज्यादा कुछ नहीं। डर यह है कि अब तुम ज्यादा गहरे जाना चाहते हो; ऐसा नहीं है कि लड़की खो जाएगी। तुम डरे हुए हो और झिझक रहे हो। यदि रिश्ते ज्यादा करीबी, बहुत गहरे नहीं हैं तो हम अपने मुखौटे आसानी से कायम रख सकते हैं समाजिक चेहरे अच्छे से काम करते हैं। तब जब तुम मुस्कुराते हो तो तुम्हें मुस्कुराने की कोई जरूरत नहीं होती, सिर्फ मुखौटा मुस्कुराता है।
यदि तुम वाकई गहरे जाना चाहते हो तो वहां खतरे हैं। तुम्हें नग्न जाना होगा और नग्न का मतलब अंदर की सभी समस्याएं दूसरा व्यक्ति जान जाएगा। जब तुम्हारी कोई छवि नहीं होती, तुम्हारी वास्तविकता खुली और भेद्य होती है, और यह बात भय पैदा करती है, लेकिन हम अपने आपको धोखा दिए चले जाते हैं कि हम इसके लिए भयभीत नहीं हैं; हम डर रहे हैं कि लड़की कहीं छोड़ कर न चली जाए। यह भय नहीं है।
Tweet |