मानवता
मानव-जीवन की सफलता, सौंदर्य और उपयोगिता में वृद्धि जिन नैतिक सुणों से होती है, उनमें सहानुभूति का महत्त्व कम नहीं है।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
सहानुभूति चरित्र की गरिमा है, जिससे पराये अपने हो जाते हैं। सहानुभूति से मन निर्मल होता है, पवित्रता जागती है और बुद्धि-प्रखरता से व्यक्तित्व निखर उठता है। संत वेलूदलकाक्स का कथन है, ‘जब अपनी ओर देखो तो सख्ती से काम लो, दूसरों की ओर देखो तो नम्रता प्रकट करो। अनुचित छोटाकशी से परहेज करो-दोष-दर्शन साधारण मनुष्यों का कार्य है।’ इसमें संदेह नहीं है कि दूसरों को गिराने, नीचा दिखाने की वृत्ति आत्महीनता की परिचायक है।
निकृष्ट विचारधारा के लोग सदैव समाज में कलह-कटुता के बीज बोते हैं। इससे सभी उनका निरादर करने लगते हैं। उनका विश्वास उठ जाता है और मुसीबत पड़ने पर कोई साथ तक नहीं देता। बीमार पड़े हैं पर दवा का कहीं इंतजाम नहीं। दूध मांगते हैं पर कोई पानी देने को भी तैयार नहीं होता। बड़ी दुर्दशा होती है, कोई पास तक नहीं आता। पर किया क्या जाए, जिसने दूसरों के साथ उदारता, करुणा, शालीनता, सभ्यता, मुक्तहस्तता एवं दयालुता का कभी भी रु ख न अपनाया हो, उसको आड़े वक्त कोई सहयोग न करे, सहायता न दे तो इसमें आश्चर्य करने की कौन-सी बात है।
दूसरों को जीतने के लिए सहानुभूति रामबाण है। ‘सह’ का अर्थ है साथ-साथ अर्थात उस जैसा। अनुभूति का अर्थ है अनुभव, बोध। जैसी उसकी अवस्था हो वैसी ही अपनी, इसी का नाम सहानुभूति है। एक व्यक्ति पीड़ा से छटपटा रहा है, पांव टूट गया है, कष्ट के मारे तड़फड़ा रहा है। दूसरा व्यक्ति बगल में खड़ा है, उससे यह देखा नहीं जाता। यह कष्ट मुझे होता तो कितनी तकलीफ होती, वह इस भावना मात्र से छटपटा उठता है।
उसकी भी दशा ठीक वैसी ही हो जाती है, जैसी चोट खाए व्यक्ति की। झट डॉक्टर को बुलाता है, घाव साफ करता है और दवा लगाता है। दूसरों की मुसीबतों को अपना दु:ख समझ कर सेवा करने का नाम सहानुभूति है। यह मानवता का उच्च नैतिक गुण है। वॉल्ट विटमैन के शब्दों से यह और भी स्पष्ट हो जाता है कि सहानुभूति किसे कहते हैं। उन्होंने लिखा है, ‘मैं विपत्तिग्रस्त मनुष्य से यह नहीं पूछता कि तुम्हारी दशा कैसी है वरन-मैं स्वयं भी आपदग्रस्त बन जाता हूं।
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