मन की प्रकृति
दिमाग और दिल की जद्दोजहद की खूब चर्चा होती है। वास्तविकता में ऐसा कोई अंतर नहीं होता क्योंकि आप जैसे सोचते हैं, वैसे ही महसूस करते हैं।
![]() सद्गुरु |
अलग-अलग लोगों के लिए, अलग-अलग चीजें पहले आती हैं। आज, काफी हद तक शिक्षा के कारण अधिकांश लोगों के उनके विचार उनकी भावनाओं से पहले आते हैं। मगर अब भी ऐसे लोगों की काफी तादाद है जिनकी भावनाएं उनके विचारों से आगे चलती हैं। आजकल जिन लोगों की भावनाएं उनके विचारों से आगे दौड़ती हैं, उन्हें मूर्ख महसूस कराया जाता है क्योंकि आजकल भावना की शक्ति और बुद्धि को नहीं समझा जा रहा, हालांकि अब लोग इमोशनल क्वोशंट की बात करने लगे हैं। सोनाक्षी पूछ रही हैं कि कुछ स्थितियों में आप नहीं होना चाहते मगर भावनाएं उलझी होती हैं। इसलिए विचार बार-बार वहां जाते हैं, आप अनजाने में उसी दिशा में चलते रहते हैं।
विचार तेज होते हैं, बड़ी तेजी से पलट सकते हैं। मगर भावनाएं सुस्त होती हैं। पलटने में थोड़ा समय लेती हैं। आज आप सोच सकते हैं, ‘अरे, यह दुनिया का सबसे अच्छा इंसान है।’ कल अगर वह इंसान कुछ ऐसा करता है, जो आपको पसंद नहीं आता, तो तत्काल आपके विचार कहेंगे, ‘वह अच्छा नहीं है।’ मगर भावनाएं उतनी तेज नहीं होतीं। अगर मेरी भावनाएं इस इंसान के साथ जुड़ गई हैं, तो वे इतनी जल्दी पलटती नहीं हैं। जब तक वे पलटें तब तक आप परेशान होते हैं। मन से कुछ निकाला नहीं जा सकता। इसका आप क्या कर सकते हैं?
अपनी भावनाओं या विचारों को काबू में करने की कोशिश न करें क्योंकि आपके दिमाग की प्रकृति ऐसी है कि ‘मैं इस व्यक्ति के बारे में नहीं सोचना चाहता’, का मतलब है कि आप अपना बाकी जीवन सिर्फ उसी के बारे में सोचते हुए बिताएंगे। यह बंदर वाली प्रसिद्ध कहानी है। अगर हम आपसे कहें, ‘आपको अगले पांच सेकेंड बंदरों के बारे में नहीं सोचना है,’ तो क्या आप नहीं सोचेंगे? मन में सिर्फ बंदर आएंगे। क्योंकि आपके मन की प्रकृति यही है। अगर आप कहें, ‘हे भगवान, यह विचार फिर आ रहा है, मुझे यह नहीं चाहिए,’ वह सौ गुना हो जाएगा। आपके मन की प्रकृति ऐसी ही है। मन से आप किसी चीज को जबरन नहीं हटा सकते।
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