परिवार निर्माण

Last Updated 15 Nov 2021 12:25:20 AM IST

परिवार को अपनी विशिष्टताओं को उभारने का अभ्यास करने एवं परिपुष्ट बनाने की प्रयोगशाला, पाठशाला समझें।


श्रीराम शर्मा आचार्य

इस उद्यान में सत्प्रवृत्तियों के पौधे लगाएं। हर सदस्य को स्वावलंबी सुसंस्कारी एवं समाजनिष्ठ बनाने का भरसक प्रयत्न करें। इसके लिए सर्वप्रथम ढालने वाले सांचे की तरह आदर्शवान बनें ताकि स्वयं की कथनी-करनी की एकता का प्रभाव पड़े। स्मरण रहे सांचे के अनुसार ही खिलौने ढलते हैं। पारिवारिक उत्तरदायित्व में सर्वप्रथम है संचालक का आदर्शवादी ढांचे में ढलना। दूसरा है माली की तरह हरे पौधे को शालीनता के क्षेत्र में विकसित करना। संयम और सज्जनता एक तथ्य के दो नाम हैं।

भोजन सात्विक बने और नियत समय पर सीमित मात्रा में खाने का ही अभ्यास बने। कामुकता को उत्तेजना न मिले, सभी की दिनचर्या निर्धारित रहे। किसी को आलस्य-प्रमाद की आदत न पड़ने दी जाए और न कोई आवारागर्दी अपनाए व कुसंग में फिरे। फैशन और जेवर को बचकाना, उपहासास्पद माना जाए, केश विन्यास और अश्लील, उत्तेजक पोशाक कोई न पहने और न जेवर-आभूषणों से लदे। नाक, कान छेदने और उनके चित्र-विचित्र लटकन लटकाने का पिछड़ेपन का प्रतीत फैशन कोई महिला न अपनाए।

पारिवारिक पंचशीलों में श्रमशीलता, मितव्ययिता, सुव्यवस्था, शालीन शिष्टता और उदार सहकारिता की गणना की गई है। इन पांच गुणों के लिए उपदेश देने से काम नहीं चलता। ऐसे व्यावहारिक कार्यक्रम बनाने पड़ते हैं, जिन्हें करते रहने से वे सिद्धांत व्यवहार में उतरें। उत्तराधिकार का लालच किसी के मस्तिष्क में नहीं जमने देना चाहिए, वरन हर सदस्य के मन में यह सिद्धांत जमना चाहिए कि परिवार की संयुक्त संपदा में उसका भरण-पोषण, शिक्षण एवं स्वावलंबन संभव हुआ है। इस ऋण को चुकाने में ही ईमानदारी है।

कमाऊ होते ही आमदनी जेब में रखना और पत्नी को लेकर मनमाना खर्च करने के लिए अलग हो जाना प्रत्यक्ष बेईमानी है। उत्तराधिकार का कानून मात्र कमाने में असमथरे के लिए लागू होना चाहिए, न कि स्वावलंबियों की मुफ्त की कमाई लूट लेने के लिए। अध्यात्मवाद और साम्यवाद, दोनों ही इस मत के हैं कि पूर्वजों की छोड़ी कमाई को असमर्थ आश्रित ही तब तक उपयोग करें जब तक कि वे स्वावलंबी नहीं बन जाते।



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