एक कहानी

Last Updated 09 Feb 2021 03:11:33 AM IST

जर्मन कहानी है एक कि एक आदमी ने बहुत दिन तक तपश्चर्या की। देवदूत प्रगट हुआ।


आचार्य रजनीश ओशो

उस फरिश्ते ने कहा कि मांग ले कुछ मांगना हो। तो उस आदमी ने कहा : कुछ ऐसी चीज दो जो कभी किसी का न दी हो। मैं तो कोई ऐसी चीज मांगता हूं जो कभी हुई न हो और कभी हो भी नहीं। उस फरिश्ते ने कहा: तो ठीक, ऐसा ही किए देते हैं। कल से तेरी छाया न बनेगी। धूप में चलेगा, तो भी छाया नहीं बनेगी। वह आदमी तो बड़ा खुश हुआ। उसने कहा कि गजब हुआ! सारी दुनिया में ख्याति हो जाएगी। ऐसा आदमी न कभी इतिहास में हुआ, न कभी होगा-कि जो धूप में चले और जिसकी छाया न बने! पहाड़ वगैरह छोड़ दिया, जहां बैठ कर तपश्चर्या कर रहा था। वह तपश्चर्या भी अहंकार के लिए नये निमित्त खोजने की तलाश थी। और इससे बड़ा निमित्त और क्या मिल सकता था, जरा सोचो तुम कि तुम धूप में चलो और तुम्हारी छाया न बने!

सारी दुनिया चरण छूने आएगी। आया नगर में, घूमा। बात कुछ उल्टी ही हो गई। लोग उससे बचने लगे। लोग कन्नी काट जाएं। जहां से निकले, कोई दूसरा आदमी आ रहा हो परिचित, तो वह बगल की दुकान में घुस जाए आदमी, या बगल की गली से निकल जाए। अपने बिल्कुल पराए होने लगे। मित्र पास न आएं, गांव-भर में खबर फैल गई कि यह आदमी भूत-प्रेम हो गया, या क्या मामला है! इसकी छाया नहीं बनती! कहानियों में तो सिर्फ  भूत-प्रेतों की छाया नहीं बनती या देवताओं की छाया नहीं बनती। तो देवता तो यह हो नहीं सकता। देवता तो कोई मान नहीं सकता इसको। घर के लोग अपना दरवाजा बंद कर लिए, जब वह आया, पत्नी ने कहा : क्षमा करो, पतिदेव! अपनी गुफा में ही रहो! आखिर हमें भी जीना है।

मित्रों ने दरवाजे बंद कर लिए। होटलों में लोग एकदम दरवाजे बंद करने लगें, भोजन देने को कोई राजी नहीं। छाया नहीं बनती, लेकिन भूख तो लगती ही थी। पानी पिलाने को कोई राजी नहीं। और लोगों ने कहा कि अगर तुमने गांव नहीं छोड़ा तो हम पुलिस को पकड़वा देंगे। बड़ा हैरान हुआ कि यह भी क्या मैंने वरदान मांग लिया! यह कहानी बड़ी अर्थपूर्ण है। उस आदमी की छाया खो गई थी और ऐसी हालत हो गई। और तुम्हारी आत्मा खो गई है, सिर्फ  छाया बची है। तुम्हारी हालत तो सोचो! उसकी आत्मा तो बची थी, छाया खो गई थी। तुम्हारी छाया बची है, आत्मा खो गई है।



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