सबको स्वीकार करें
योग का अर्थ है पूर्ण मिलन यानी हर चीज आपके अनुभव में एक हो गई है, लेकिन तर्क कहता है कि बुराई या गंदगी को स्वीकार मत करो।
सद्गुरु |
कुछ समय पहले की बात है, किसी ने मुझसे पूछा, ‘योग का मतलब तो मिलन या एक होना है, फिर भेदभाव करने वाले मन का क्या करें? क्या ऐसा नहीं है कि जो बुरा है उसे हम छोड़ दें और जो अच्छा है, उसे अपना लें?’ देखिए, आज जो कीचड़ है, वही कल फूल बन सकता है, आज जो गंदगी है, वह कल फल बन सकती है, आज जो दुर्गध है, वह कल सुगंध में बदल सकती है। अगर हम आपके निर्णय से चलें और सारी गंदगी को बाहर कर दें, तो आपके हिस्से में ना कभी फूल आएगा, न फल, और न ही खुशबू। इसलिए सबको साथ लेकर चलने की सोच कोई पसंद का मुद्दा नहीं है क्योंकि ब्रह्माण्ड की बनावट ऐसी है ही नहीं। आज जो इंसान है, वह कल मिट्टी हो जाएगा।
अगर हमें आज ही यह समझ आ जाए, तो हम इसे योग कहते हैं वरना अगर यही बात अंत में समझ आती है, तो हम इसे अंतिम संस्कार कहते हैं। आपको यह बात समझनी चाहिए कि आप फिलहाल भी इस धरती का वैसा ही अंश है, जैसा कि आप मरने के बाद होंगे। आप जिसे ‘मैं’ कहते हैं, या जिसे एक ‘कीड़ा’, ‘केंचुआ’ या ‘गंदगी’ कहते हैं, बुनियादी रूप से सब एक ही हैं। आप भोजन और कीचड़ के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं कर सकते, लेकिन बिना कीचड़ के भोजन पैदा हो ही नहीं सकता। अगर सबको समाहित करने का भाव नहीं होगा, तो जीवन में कोई जैविक एकता होगी ही नहीं। इस जैविक एकता के अभाव में इंसान का संघर्ष अंतहीन हो जाता है। शुरू में यह एक मानसिक समस्या के रूप में शुरू होगा।
बाद में आप जैसे-जैसे तरक्की करेंगे, आप भावनात्मक रूप से निराशा से भर उठेंगे। अगर आप आगे और भी तरक्की करते हैं, तो यह एक शारीरिक रोग का रूप ले लेगा। जैसे-जैसे हम जीवन के साथ जैविक एकता खोते जाएंगे, वैसे-वैसे हमारी दशा खराब होती जाएगी। तब हम नई-नई बीमारियों की खोज करेंगे। अगर आप जीवन व जीवन बनाने वाले पदाथरे, जैसे धरती-जिस पर आप चलते हैं, पानी-जो आप पीते हैं, हवा, जिसमें सांस लेते हैं, या फिर आकाश जो आपको थामे हुए है, के साथ जाने-अनजाने, सचेतन या अचेतन रूप से अपनी दूरी बना लेंगे तो विकृति आएगी ही।
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