ज्ञान
एक ज्ञान है, जो भर तो देता है मन को बहुत जानकारी से, लेकिन हृदय को शून्य नहीं करता।
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
एक ज्ञान है, जो मन भरता नहीं, खाली करता है। हृदय को शून्य का मंदिर बनाता है। एक ज्ञान है, जो सीखने से मिलता है और एक ज्ञान है जो अनसीखने से मिलता है। जो सीखने से मिले, वह कूड़ा-करकट है। जो अनसीखने से मिले, वही मूल्यवान है। सीखने से वही सीखा जा सकता है, जो बाहर से डाला जाता है।
अनसीखने से उसका जन्म होता है, जो तुम्हारे भीतर सदा से छिपा ही है। ज्ञान को अगर तुमने पाने की यात्रा बनाया, तो पंडित होकर समाप्त हो जाओगे। ज्ञान को अगर खोने की खोज बनाया, तो प्रज्ञा का जन्म होगा। पांडित्य तो बोझ है; उससे तुम मुक्त न होओगे। वह तो तुम्हें और भी बांधेगा। वह तो गले में लगी फांसी है, पैरों में पड़ी जंजीर है। पंडित तो कारागृह बन जाएगा तुम्हारे चारों तरफ। तुम उसके कारण अंधे हो जाओगे।
तुम्हारे द्वारा दरवाजे बंद हो जाएंगे। क्योंकि जिसे भी यह भ्रम पैदा हो जाता है कि शब्दों को जानकर उसने जान लिया, उसका अज्ञान पत्थर की तरह मजबूत हो जाता है। तुम उस ज्ञान की तलाश करना जो शब्दों से नहीं मिलता, नि:शब्द से मिलता है। जो सोचने विचारने से नहीं मिलता, निर्विचार होने से मिलता है। तुम उस ज्ञान को खोजना, जो शास्त्रों में नहीं है, स्वयं में है। वही ज्ञान तुम्हें मुक्त करेगा, वही ज्ञान तुम्हें एक नए नर्तन से भर देगा। वह तुम्हें जीवित करेगा, वह तुम्हें तुम्हारी कब्र के ऊपर बाहर उठाएगा। उससे ही आएंगे फूल जीवन के। और उससे ही अंतत: परमात्मा का प्रकाश प्रगटेगा। पंडित जानता है और नहीं जानता। लगता है कि जानता है।
ऐसे ही, जैसे बीमार आदमी बजाय औषधि लेने के, चिकित्साशास्त्र का अध्ययन करने लगे। जैसे भूखा आदमी पाकशास्त्र पढ़ने लगे। ऐसे सत्य की अगर भूख हो, तो भूल कर भी धर्मशास्त्र में मत उलझ जाना। वहां सत्य के संबंध में बहुत बातें कही गई हैं, लेकिन सत्य नहीं है। क्योंकि सत्य तो कब कहा जा सका है? कौन हुआ है समर्थ जो उसे कह सके? इसलिए गुरु ज्ञान नहीं देता, वस्तुत: तुम जो ज्ञान लेकर आते हो उसे छीन लेता है। गुरु तुम्हें बनाता नहीं, मिटाता है। तुम्हारी याददाश्त के संग्रह को बढ़ाता नहीं, तुम्हारी याददाश्त, तुमहारे संग्रह को खाली करता है। जब तुम पूरे खाली हो जाते हो, तो परमात्मा तुम्हें भर देता है। शून्य हो जाना पूर्ण को पाने का मार्ग है।
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