जीवन
एक अद्भुत सच्ची घटना है, जो दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बदनाम जर्मन यातना शिविर ‘ऑशविट्ज’ में घटी।
सद्गुरु |
लोगों को नंबर से बुलाया जा रहा था और उन्हें मारने वाले इलाके में ले जाया जा रहा था। कोई भी नंबर कभी भी बुलाया जा रहा था, और बूढ़े और कमजोर लोग जो काम नहीं कर सकते थे, उन्हें चुना जा रहा था। एक आदमी का नंबर बुलाया गया और वो बहुत ही डर गया। वो मरना नहीं चाहता था। उसके पास ही एक क्रिश्चियन मिशनरी खड़ा था, जिसका नंबर नहीं बुलाया गया था। उस आदमी का डर देख कर वो बोला, ‘‘डरो मत। तुम्हारी जगह मैं जाऊंगा।’’ उस आदमी को बहुत शर्म आई, पर उसने उनकी बात को नहीं ठुकराया। वो जिंदा रहना चाहता था।
मिशनरी मारा गया। बाद में जर्मनी की हार हुई और यह आदमी छूट कर बाहर आ गया। कई सालों तक वो हार और शर्म के भाव में जीता रहा और उसने ये बात अपनी जीवन कथा में कही। उसे यह समझ में आया कि उसके ये सब करने का कोई फायदा नहीं था, क्योंकि उसका जीवन ही किसी से मिला हुआ दान था। इसका मतलब यह नहीं है कि आप जाकर अपना बलिदान दे दें या ऐसा कुछ पागलपन करें। वो आदमी जो अपनी मौत की तरफ गया, वो अपना बलिदान देने की बात नहीं सोच रहा था। उस समय उसने बस यह देखा कि क्या करने की जरूरत थी और उसने बिना दूसरा कोई विचार किए, बस यह कर दिया। अगर आप अपना जीवन स्वर्ग जाने के लोभ के बिना जीते हैं, तो आप सही रास्ते पर हैं।
पर अगर स्वर्ग का सौदे करके आप सही रास्ते पर चल सकते हैं तो जाईये, ऐसा कीजिए। और अगर ऐसी परिपक्वता आप में आ जाती है कि आपको कोई सौदा नहीं चाहिए, और फिर भी आप ये कर सकते हैं, तो यह अच्छा है। आप अगर इन सीमाओं से बाहर आ गए हैं कि आप को कुछ दिया जाए, तो ही आप कुछ करेंगे। जो आदमी सिर्फ उतना ही करता है, जितना उसी के लिए जरूरी है, तो उसे भी उतना ही मिलेगा। अपने जीवन में वह हमेशा भिखारी ही रहेगा। उसे कभी पता नहीं चलेगा कि वास्तव में ताकत क्या है, उसे दिव्यता का कुछ भी पता नहीं चलेगा क्योंकि दिव्यता सब कुछ बिना किसी उद्देश्य के करती है। आप ही देखिए! सृष्टि में सब कुछ बिना उद्देश्य के ही किया जाता है।
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