ईश विश्वास
चोट खाया हुआ सांप आक्रमणकारी पर ऐसी फूफकार मारकर दौड़ता है कि उसके होश छूट जाते हैं, बचाव के लिए भागना ही पड़ता है।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
सांसारिक व्यथाओं से विक्षुब्ध मनुष्य की भी ऐसी ही स्थिति होती है। जब मनुष्य को पीड़ाएं चारों ओर से घेर लेती हैं और कोई सहारा नहीं सूझता, तो वह निष्ठापूर्वक अपने परमेर को पुकारता है। हार खाये हुए मनुष्य की कातर पुकार से परमात्मा का आसन हिल जाता है और उन्हें सारी व्यवस्था छोड़कर भक्त की सेवा के लिए भागना पड़ता है। मनुष्य ने बुलाया हो और उसकी शुभेच्छा न आई हो, मनुष्य ने सहायता मांगी हो और परमात्मा ने मनोरथ पूर्ण न किया हो, मनुष्य की प्रार्थना पर परमात्मा दौड़ कर न चला आया हो, ऐसा कभी नहीं हुआ। उसे बुलाइये, वह आपके अंत:करण में दिव्य प्रकाश बनकर उतरेगा, मधुर संगीत बनकर हृदय में गुंजन करेगा, आशीर्वाद बनकर आपके दु:ख दर्द दूर करेगा। पर उसे सच्चे हृदय से बुलाइए, निष्कपट और निश्चल होकर पुकारिए। ऐसा समय आता है, जब मनुष्य संसार को भूलकर कुछ क्षण के लिए ऐसे दिव्य लोक में पहुंचता है, जहां उसे असीम सहानुभूति और शात शांति मिलती है।
प्रार्थना की इस आंतरिक स्थिति और उसके आनंद को कोई भुक्त भोगी ही जान सकता है। परमात्मा के निकट पहुंच कर आत्मा जब भक्ति भावना से अपनी संवेदनाएं प्रस्तुत करती है, तो अनिर्वचनीय आनंद मिलता है। अंत:करण की समस्त वासनाएं विलीन हो जाती हैं, इंद्रियों की चेष्टाएं शांत हो जाती हैं। बहुत से लोग हैं, जो ईश्वर और उसके अस्तित्व को मानने से इंकार करते हैं, पर यदि भली-भांति देखा जाए, तो मूढ़ताग्रस्त व्यक्ति ही ऐसा कर सकते हैं। एक बहुत बड़ा आश्चर्य हमारे सामने बिखरा पड़ा है। उसे देखकर भी जिसका विवेक जाग्रत न हो, कौतूहल पैदा न हो, उसे और कहा भी क्या जाएगा? अनंत आकाश और उस पर निरंतर होती रहती ग्रह-नक्षत्रों की हलचल, सूर्य, चन्द्रमा, सागर, पर्वत, नदियां, वृक्ष, वनस्पति, मनुष्य आदि के स्वयं के बदलते हुए क्षण क्या यह सब मनुष्य का विवेक जाग्रत करने के लिए काफी नहीं है? विचारवान व्यक्ति कभी ऐसा नहीं सोचेगा। आदिकाल से लेकर अब तक जितने भी संत, महापुरुष हुए हैं और जिन्होंने भी आत्म कल्याण या लोक कल्याण की दिशा में कदम उठाया है, वे सबने परमात्मा-ईश्वर का आश्रय मुख्य रूप से लिया है।
Tweet |