जीवन-मृत्यु
दुर्भाग्यवश, बहुत सारे लोग केवल तभी जीवंत होते हैं, जब मृत्यु उनके सामने खड़ी होती है - चाहे युद्ध में या कार दुर्घटना में।
जग्गी वासुदेव |
जब मरने की संभावना से आप आमने-सामने होते हैं, तभी आप पूरी तरह से जीवंत होते हैं। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है! जब आप सही ढंग से, वास्तव में अपने मरणशील होने का सामना करते हैं, तभी ये समझते हैं कि आपका जीवित होना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। मैं जब लोगों को देखता हूं, तो ऐसा लगता है जैसे वे कब्र के अंदर जाने का अभ्यास कर रहे हैं, जब वे अपनी कब्र में होंगे तब उन्हें कैसा होना चाहिए, उनके चेहरे के भाव कैसे होने चाहिए? वे यह बात नहीं समझते कि मरना तो उन्हें है ही। उन्हें लगता है कि वे हमेशा यहां रहेंगे। जब वे जीवित हैं, तो हमेशा मृत्यु का अभ्यास करते रहते हैं। पर जब आप उन्हें मृत्यु का खतरा दिखाएंगे, तो वे जीवंत हो उठेंगे। आप को क्या लगता है, कृष्ण ने अपना उपदेश युद्ध के मैदान में क्यों दिया?
किसी आश्रम के शांतिपूर्ण माहौल में नहीं, भारत के सुंदर जंगलों में नहीं, न ही हिमालय की किसी गुफा में, पर एक खतरनाक युद्ध के मैदान में; क्योंकि मारे जाने का खतरा दिखे बिना ज्यादातर मनुष्यों में अपने जीवन की ओर देखने की बुद्धि ही नहीं होती। मुझे लगता है कि जब बिना ड्राइवर के अपने आप चलने वाली कारें आ जाएंगी, तब बहुत सारे लोगों को आत्मज्ञान हो जाएगा। कुछ समय बाद शायद आप सीख जाएंगे कि इस बात को कैसे अनदेखा करें - वो बात अलग है - पर शुरुआत में आप नहीं जानते कि ये रु केगी या नहीं। आप को नहीं मालूम कि ये ठीक समय पर रु केगी या कहीं जा कर भिड़ जाएगी। जब ये अपने आप चलने वाली कारें उपयोग में आ जाएंगी, तब उसके कुछ ही महीनों में इस धरती पर कुछ लोगों को तो आत्मज्ञान हो ही जाएगा। तो हमें कुछ आत्मज्ञानियों के लिए तैयार रहना चाहिए। किसी कार दुर्घटना की राह मत देखिए।
आपको यह जानना ही चाहिए कि आप इसी समय गिर कर मर सकते हैं। मैं आपके लिए ऐसा नहीं चाहता और आपको लंबे जीवन का आशीर्वाद भी देता हूं, पर ये संभव है। हर रोज कई सारे लोग इस तरह से मर जाते हैं। बैठे-बैठे, खड़े-खड़े, लेटे हुए - वे हर तरह की मुद्रा में मरते हैं। जब आपको समझ आती है कि आप मर सकते हैं, तो अचानक ही आपको जीवन का मूल्य समझ में आता है, आप उसके प्रति जीवंत हो उठते हैं।
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