जीवन में स्थिरता

Last Updated 12 Jun 2020 01:59:44 AM IST

लोग अपने जीवन को काबू करके, उसमें कमी करके या काट-छांट करके उसे स्थिर करना चाहते हैं।


जग्गी वासुदेव

यह आपकी दादी-नानी का तरीका है, जो आपसे हमेशा कहती होंगी, ‘अपने को काबू करो, तभी तुममें स्थिरता आएगी।’ बेशक, अगर आप मर जाएं तो आप स्थिर होंगे। मैं यकीन से यह बात कह सकता हूं। तो आम तौर पर जो लोग स्थिरता की बात करते हैं, उनका अस्तित्व घुटा हुआ है। एक तरह से वे कब्जियत वाला जीवन जी रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि कब्ज क्या चीज होती है, इसका मतलब है कि यह थोड़ी-थोड़ी हो रही है। इसी तरह लोगों के जीवन में खुशी, प्यार, परमानंद, यहां वहां से थोड़ा-थोड़ा मिलता है।

स्थिरता यह नहीं है-कि आपने अपने जीवन को इतना सीमित कर लिया है, संकुचित कर लिया है कि आप स्थिर हो गए हैं। ऐसी स्थिरता से कुछ हासिल होने वाला नहीं। स्थिरता वह है, जहां आप सब कुछ पूरी स्पष्टता के साथ देख सकें। इसीलिए आदि योगी का जिक्र होता है, क्योंकि हम लोग स्थिरता के साथ-साथ उल्लास से भरे नृत्य की बात भी करते हैं। यह इसलिए संभव हो पाया, क्योंकि उनके पास दो से ज्यादा आंखें थीं, तीन तो नहीं, लेकिन दो से ज्यादा आंखें जरूर थीं। इसका मतलब हुआ कि वह आम लोगों से कहीं ज्यादा देख सकते थे।

चूंकि वे ज्यादा देख सकते थे, इसलिए स्थिर हो सकते थे। अगर आप चीजों का एक ही हिस्सा देखेंगे तो आप स्थिर नहीं हो सकते। तो सारी कोशिश बेहतर देखने की है। दर्शन का मतलब देखना होता है। यह पूरी संस्कृति इसी के बारे में बात करती आई है। आप मंदिर कोई अर्जी देने नहीं, बल्कि दर्शन के लिए जाते हैं, जिससे आप बेहतर देखने के काबिल हो सकें। बुनियादी तौर पर अगर लोग जीवन में सामने की चीजों को भी नहीं देख पाते, तो उसकी वजह सिर्फ  इतनी है कि उन लोगों ने जीवन में बहुत सारी चीजों के साथ अपनी पहचान बना कर रखी है।

यह पहचान शरीर के साथ शुरू होती है, फिर आगे जाकर उसमें कई और चीजें जुड़ जाती हैं। जैसे ही आप किसी चीज के साथ पहचान बनाते हैं, आपके पूरे मन को यह समझ आ जाता है, कि इसे सुरक्षित रखने की जरूरत है, और फिर वो पूरी तरह से उसकी सुरक्षा के लिए काम करने लगता है। अब आप पूछेंगे, ‘तो मैं अपने देश के साथ, अपने धर्म के साथ और अपनी जाति के साथ पहचान कैसे खत्म करूं?’ 



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