शुभ कमाई से प्रीति
एक गांव था! ऐसी जगह बसा था..जहां आने जाने के लिए एकमात्र साधन नाव थी.. क्योंकि बीच में नदी पड़ती थी और कोई रास्ता भी नहीं था।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
एक बार वहां महामारी फैल गई और बहुत-सी मौतें हो गई..लगभग सभी लोग वहां से जा चुके थे..कुछ गिने-चुने लोग बचे थे और वो नाविक गांव में बोल कर आ गया था कि मैं इसके बाद नहीं आऊंगा जिसको चलना है वो आ जाए..सबसे पहले एक भिखारी आ गया और बोला मेरे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है..मुझे ले चलो..ईश्वर आपका भला करेगा! नाविक सज्जन पुरु ष था..उसने कहा कि यहीं रुको। जगह बचेगी तो तुम्हें ले जाऊंगा..धीरे-धीरे करके पूरी नाव भर गई सिर्फ एक ही जगह बची।
नाविक भिखारी को बोलने ही वाला था कि आवाज आई रु को, मैं भी आ रहा हूं..आवाज जमींदार की थी..जिसका धन-दौलत से लोभ और मोह देख कर उसका परिवार भी उसे छोड़कर जा चुका था..सवाल था कि किसे लिया जाए..जमींदार ने नाविक से कहा-मेरे पास सोना-चांदी है..मैं तुम्हें दे दूंगा और भिखारी ने हाथ जोड़कर कहा कि भगवान के लिए मुझे ले चलो..नाविक समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे तो उसने फैसला नाव में बैठे लोगों पर छोड़ दिया।
सब आपस में चर्चा करने लगे..इधर जमींदार सबको धन का पल्रोभन देता रहा और उस भिखारी से बोला ये सब कुछ तू ले ले..मैं तेरे हाथ-पैर जोड़ता हूं..मुझे जाने दे! तो भिखारी ने कहा, मुझे भी अपनी जान प्यारी है। मेरी जिंदगी ही नहीं रहेगी तो धन दौलत का क्या करूंगा?
जीवन है तो जहान है! तो सभी ने मिलकर..फैसला किया कि जमींदार ने आज तक हमसे लूटा ही है ब्याज पर ब्याज लगाकर हमारी जमीन अपने नाम कर ली..और माना कि भिखारी हमसे हमेशा मांगता रहा पर उसके बदले में इसने हमें खूब दुआएं दीं और इस तरह भिखारी को साथ में ले लिया गया..ईश्वर भी हमारे साथ वैसा ही न्याय करता है..जब अंत समय आता है..सारे कर्मो का लेखा-जोखा सामने रख देता है और फैसले उसी हिसाब से होते हैं..फिर गिड़गिड़ाना काम नहीं आता। शुभ कर्म ही साथ होते हैं..इसलिए अभी भी वक्त है-हमारे पास संभलने का..और शुभ कर्म करने का..बाद में कुछ नहीं होगा..शायद इसलिए कहा गया है..अब पछताय क्या जब चिड़ियां चुग गई खेत..।
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