सांस

Last Updated 20 May 2020 12:30:28 AM IST

जैसे जैसे हमारी जागरूकता में तीव्रता और पैनापन आने लगता है, एक बात जिसके बारे में हम स्वाभाविक रूप से सबसे पहले जागरूक होते हैं, वह है सांस।


सद्गुरु

हमारे शरीर में चलने वाली सांस, एक यांत्रिक प्रक्रिया है, जो लगातार बिना रु के चलती है। यह बहुत आश्चर्यजनक है कि कैसे अधिकतर लोग इसके बारे में जागरूक हुए बिना ही जीते रहते हैं, लेकिन एक बार जब आप सांस के बारे में जागरूक हो जाते हैं, तो ये एक अदभुत प्रक्रिया बन जाती है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि आज ‘सांस को देखना’ संभवत: ध्यान की सबसे अधिक लोकप्रिय विधियों में से है। यह मूलभूत और सरल है, तथा इतनी आसानी से और स्वाभाविक रूप से होती है कि इसके लिए कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती। अगर आप थोड़े से ज्यादा सचेत हो जाते हैं, तो आप की सांस स्वाभाविक रूप से आप की जागरूकता में आ जाएगी। मैं छह-सात वर्ष का था, जब मैंने अपनी सांस का आनंद लेना शुरू किया। अपनी छोटी सी छाती और पेट को लयबद्ध ढंग से ऊपर-नीचे होते देखने में मुझे बहुत रुचि थी और मैं घंटों तक बस यही करता रहता था। ध्यान का विचार तो काफी बाद में मेरे जीवन में आया। तो अगर आप थोड़े से भी सचेत हैं तो आप सांस की सरल लय को अनदेखा नहीं कर सकते, जो बिना रु के चलती रहती है।

अधिकतर लोगों का ध्यान अपनी सांस की ओर तभी जाता है जब उनकी ास नलियों में ऐंठन आ जाती है, या सांस ज्यादा तेजी से चलती है। वे अपनी सामान्य सांस को अनदेखा कर रहे हैं, सिर्फ  इसलिए क्योंकि उनमें ध्यान देने की कमी एक गंभीर समस्या है। और आजकल तो लोग ध्यान की कमी को एक योग्यता की तरह देख रहे हैं। अपने जीवन में और खास तौर पर अपने बच्चों के जीवन में, ध्यान देने की प्रवृत्ति लाना बहुत महत्त्वपूर्ण है। आखिर में, बात चाहे आध्यात्मिक हो या सांसारिक, दुनिया से आप को उतना ही मिलता है जितना आप ध्यान देने को तैयार हैं। सांस पर ध्यान देना वैसे तो एक जबरन प्रयास है। लेकिन यह आपको सचेत करने का एक तरीका भी है। महत्त्वपूर्ण चीज अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करना नहीं है, बल्कि अपनी जागरूकता के स्तर को इतना ऊंचा उठाना है कि आप स्वाभाविक रूप से अपनी सांस के प्रति सचेत हो जाएं। सांस लेना एक यांत्रिक प्रक्रिया है।



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