योग

Last Updated 21 May 2020 01:03:56 AM IST

भारतीय अध्यात्म विद्या के जानकारों ने चार प्रकार के योग माने हैं-मंत्रयोग, हठयोग, लययोग, राजयोग। मंत्रयोग में किसी मंत्र के सहारे चित्त को एकाग्र किया जाता है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

किसी मंत्र का उच्चारण करने तथा उसके अर्थ की भावना करने से साधक का मन संसार के विभिन्न विषयों से खिंचकर एक लक्ष्य की ओर लग जाता है। मंत्रयोग आत्मा की परोक्ष अनुभूति कराने का अन्यतम उपाय है। चेतन सत्ता को अपने से पृथक मानकर उसकी आराधना की जाती है। मंत्रयोग भक्ति का एक रूप है।

जब ध्यान करने वाले और ध्येय में अत्यंत घनिष्ठता हो जाती है तो उनका एक्य हो जाता है। अपने ही स्वरूप की अपने से पृथक कल्पना करके उस तक पहुंचने की चेष्टा मंत्रयोग द्वारा की जाती है। दूसरा हठयोग है। हठयोग में व्यक्ति प्रयत्नपूर्वक अपने आपको बाहरी विषयों और विचारों से अलग करना चाहता है। आत्मा से पृथक प्रत्येक पदार्थ से विचारों को अलग करने की चेष्टा हठयोग में होती है।

हठयोग द्वारा आत्मा की संबंध सत्ता की अनुभूति होती है क्योंकि जब हम अपनी मनोवृत्तियों का सदा नियंत्रण करते रहते हैं तो हमें ज्ञान हो जाता है कि हम वृत्तियों से पृथक कोई स्वतंत्र पदार्थ हैं। पहले-पहले मन जिस विषय से प्रयत्न करने पर भी नहीं हटता, उसी विषय पर हठयोग का अभ्यास करने से शीघ्रता से हट जाता है। मान लीजिए, हमारा मन बार-बार किसी प्रकार की खाने की वस्तु में जाता है, हठयोग द्वारा मन को उस वस्तु के प्रति उदासीन किया जा सकता है। स्वामी रामतीर्थ को सेब से बड़ा प्रेम था। जब सेब को देखते तो उनका मन और सब बातें भूलकर उसी का चिन्तन करने लगता था। इस प्रकार मन के चंचल हो जाने से विचार में विक्षेप हो जाता था।

इस कमजोरी को दूर करने के लिए उन्होंने एक सेब खरीदा और उसे अपने पढ़ने की मेज के ऊपर सामने ही रख लिया। प्रतिदिन उसकी ओर टकटकी लगाकर देखते थे। इस प्रकार आठ दिन तक उन्होंने उसकी ओर देखा। फिर जब वह सूख गया तो उसे उठाकर फेंक दिया। इस प्रकार उन्होंने एक महीने तक अभ्यास किया और कई सेवों को सड़ाकर फेंका। इसके बाद उनके मन में सेब की बात कभी नहीं आती थी। बार-बार वृत्तियों पर विजय प्राप्त करने से वे शिथिल हो जाती हैं और मन वश में हो जाता है।



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