आनंद
आध्यात्मिक होने का अर्थ यह है कि आप अपने अनुभव से जानते हैं, ‘मैं अपने आप में आनंद का स्त्रोत हूं’।
![]() जग्गी वासुदेव |
आप जान लें, समझ लें कि आप स्वयं अपने आनंद के स्त्रोत हैं, तो क्या आप हर समय आनंदपूर्ण नहीं होंगे? यह कोई चयन का मामला भी नहीं है। वास्तव में, जीवन स्वयं ही आनंदपूर्ण होना चाहता है। आप अपने जीवन की ओर देखें-आप अपने आप को शिक्षित करते हैं, धन कमाते हैं, मकान, परिवार, बच्चे-आप ये सब करते हैं क्योंकि आप को आशा है कि किसी दिन आप को इन सब से आनंद मिलेगा। पर आनंद ही एक चीज है जो आप भूल गए हैं। लोग दु:खी इसलिए होते हैं कि उनको जीवन के बारे में गहरी गलतफहमी है। ‘मेरा पति, मेरी पत्नी, मेरी सास..’। हां, वह सब है, पर आप दु:खी रहना ही पसंद करते हैं क्योंकि आपने सारा निवेश दु:खों में कर रखा है। मान लीजिए, आप के परिवार में कोई कुछ ऐसा करता है जो आपको पसंद नहीं है। तो आप अपने आप को दु:खी कर लेंगे और हर समय मुंह लटका कर घूमते रहेंगे, इस आशा से कि वे बदल जाएंगे। आप अपने आप को दु:ख देने को तैयार हैं। जब आप इस आशय के साथ दु:खी हैं कि आप को कुछ मिलेगा तो फिर क्या लाभ है, चाहे आप के हाथों में स्वर्ग ही क्यों न हो? पर, यदि आप आनंदपूर्ण व्यक्ति हैं, चाहे फिर आपके पास कुछ भी न हो, तो भी, कौन परवाह करता है?
आप वास्तव में आनंदपूर्ण हैं तो क्या कोई फर्क पड़ता है कि आपके पास क्या है और क्या नहीं, या फिर आप के पास कौन है और कौन नहीं? कृपया समझिए, आप किसी की चिंता करते हैं या किसी के प्रति प्रेमपूर्ण हैं, आप चीजें प्राप्त करना चाहते हैं, तो ये सब बस इस आशा के कारण कि आप को आनंद मिलेगा। लोग मुझे हमेशा प्रश्न पूछते हैं, ‘किसी आध्यात्मिक व्यक्ति और किसी भौतिकतावादी व्यक्ति में क्या अंतर है’? मैं, उन्हें थोड़ा मजाक में, बताता हूं, ‘एक भौतिकतावादी व्यक्ति सिर्फ अपना भोजन कमाता है। बाकी सब चीजों-आनंद, प्रेम, शांति आदि के लिए भीख मांगता है। एक आध्यात्मिक व्यक्ति अपने लिए सब कुछ कमाता है-उसका प्रेम, उसकी शांति, उसका आनंद। वह सिर्फ खाने के लिए भीख मांगता है, पर अगर वह चाहे तो वह उसे भी कमा सकता है’।
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