ब्रह्मचर्य
अगर आप ब्रह्मचारी हो जाते हैं तो एक अद्भुत बात तो यह होती है कि आप कम से कम एक जीवन को बचा लेते हैं।
![]() जग्गी वासुदेव |
अगली बात यह है कि अपनी तरह का एक और बिगड़ैल बच्चा पैदा नहीं करते। ये ब्रह्मचर्य के आसानी से देखे जा सकने वाले लाभ हैं! ब्रह्मचर्य का क्या अर्थ है? ‘ब्रह्म’, इस शब्द को हम कई तरह से, कई अथरे में देख सकते हैं। मूल रूप से ब्रह्म का अर्थ है, ‘सृष्टि के स्रोत की असीमित उपस्थिति’। सृष्टि के कर्ता भी ब्रह्मा हैं। हमारी संस्कृति में, हम यह नहीं मानते कि सृष्टिकर्ता स्वर्ग में बैठे हुए हैं। सृष्टिकर्ता ने खुद को अस्तित्व के प्रत्येक परमाणु में निवेशित किया है-वे कण कण और अस्तित्व के बहुत बड़े भाग में है। एक परमाणु में 99.99999 % भाग खाली है।
तो वास्तविक परमाणु या परमाणु के कणों का ढांचा 0.00001% से भी कम भाग में है। बाकी सब खाली है। यही अनुपात ब्रह्माण्ड में भी है। 99.99999% से भी अधिक भाग खाली है। तुलनात्मक दृष्टि से ग्रहमंडल, तारे आदि थोड़े से ही हैं, अधिकांश रूप से ब्रह्माण्ड खाली ही है। आधुनिक विज्ञान सृष्टि के उस आयाम को समझा पाने में सफल नहीं हो पा रहा, जो हमारे मन के तकरे के अनुकूल नहीं है।
वे इसे काली ऊर्जा, खाली स्थान आदि के रूप में बता रहे हैं। कह रहे हैं,‘यह शून्य है, लेकिन..’। सृष्टि के रचनाकार को हमने कहा, ‘ब्रह्मा’। जब हमने उनका वर्णन करना चाहा तो हमने कहा, ‘शिव’, जिसका अर्थ है ‘कुछ नहीं’। जब उनकी क्षमता का वर्णन करना चाहा तो उन्हें ब्रह्मा कहा। जो शिव हैं, वे ब्रह्मा बन गए। जो खाली स्थान था, वो सृष्टि का स्रोत बन गया। ब्रह्मचर्य का अर्थ है कि आप अपनी भौतिकता के सीमित परिमाण को समाप्त कर देते हैं, जिससे आप सृष्टि के स्रोत की ओर, ब्रह्म की ओर बढ़ते हैं।
सृष्टि के स्रोत में प्रवेश कर जाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से आप उनकी ओर बढ़ते हैं जिन्हें हम शिव कहते हैं, ‘वे जो नहीं हैं’। हम वहां क्यों जाना चाहते हैं? क्योंकि जब आप किसी सीमा के अंदर बंद हो जाते हैं तो आपके अंदर ‘कुछ’ ऐसा है जो उस सीमा के बाहर जाना चाहता है। यह इच्छा या चाहत सीमा को फैलाने की नहीं है। आपकी जो भी सीमा है, उससे बाहर जाने, असीमित होने की यह चाहत है। जिसकी रचना हुई है, असीमित नहीं हो सकता। जिसकी रचना नहीं हुई है, वी असीमित हो सकता है।
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