सीख

Last Updated 06 Dec 2018 04:24:58 AM IST

एक समय की बात है, एक जंगल में सेब का एक बड़ा पेड़ था। एक बच्चा रोज उस पेड़ पर खेलने आया करता था।


श्रीराम शर्मा आचार्य

वह कभी पेड़ की डाली से लटकता, कभी फल तोड़ता, कभी उछल कूद करता था, सेब का पेड़ भी उस बच्चे से काफी खुश रहता था। कई साल इस तरह बीत गए। अचानक एक दिन बच्चा कहीं चला गया और फिर लौट के नहीं आया, पेड़ ने उसका काफी इंतजार किया पर वह नहीं आया। अब तो पेड़ उदास हो गया था। काफी साल बाद वह बच्चा फिर से पेड़ के पास आया पर वह अब कुछ बड़ा हो गया था। पेड़ उसे देखकर काफी खुश हुआ और उसे अपने साथ खेलने के लिए कहा। पर बच्चा उदास होते हुए बोला कि अब वह बड़ा हो गया है, अब वह उसके साथ नहीं खेल सकता। बच्चा बोला, ‘अब मुझे खिलौने से खेलना अच्छा लगता है, पर मेरे पास खिलौने खरीदने के लिए पैसे नहीं है।’ पेड़ बोला, ‘उदास न हो तुम मेरे फल (सेब) तोड़ लो और उन्हें बेच कर खिलौने खरीद लो। बच्चा खुशी-खुशी फल (सेब) तोड़ के ले गया, लेकिन वह फिर बहुत दिनों तक वापस नहीं आया। पेड़ बहुत दुखी हुआ। अचानक बहुत दिनों बाद बच्चा जो अब जवान हो गया था, वापस आया। पेड़ बहुत खुश हुआ और उसे अपने साथ खेलने के लिए कहा। पर लड़के ने कहा, ‘वह पेड़ के साथ नहीं खेल सकता अब मुझे कुछ पैसे चाहिए क्यूंकि मुझे अपने बच्चों के लिए घर बनाना है।’ पेड़ बोला, ‘मेरी शाखाएं काट कर ले जाओ और अपना घर बना लो।’

लड़के ने खुशी-खुशी सारी शाखाएं काट डालीं और लेकर चला गया। उस समय पेड़ उसे देखकर बहुत खुश हुआ, लेकिन वह फिर कभी वापस नहीं आया। और फिर से वह पेड़ अकेला और उदास हो गया था। अंत में वह काफी दिनों बाद थका हुआ आया। तभी पेड़ उदास होते हुए बोला,‘अब मेरे पास न फल हैं और न ही लकड़ी। अब मैं तुम्हारी मदद भी नहीं कर सकता। बूढ़ा बोला,‘अब उसे कोई सहायता नहीं चाहिए। बस एक जगह चाहिए जहां वह बाकी जिंदगी आराम से गुजार सके।’ पेड़ ने उसे अपनी जड़ों में पनाह दी। यही कहानी आज हम सब की भी है। मित्रों इसी पेड़ की तरह हमारे माता-पिता भी होते हैं, जब हम छोटे होते हैं तो उनके साथ खेलकर बड़े होते हैं और बड़े होकर उन्हें छोड़ कर चले जाते हैं और तभी वापस आते हैं, जब हमें कोई जरूरत होती है।



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