ध्यान

Last Updated 17 Jan 2018 05:48:56 AM IST

आध्यात्मिक होने का मतलब हमेशा विनम्र और सुशील होना समझा जाता है.


जग्गी वासुदेव

दुर्भाग्य से सुशील होने का मतलब कोमल या कमजोर होना समझ लिया जाता है. कमजोर लोग सभ्य और सुशील अपनी इच्छा से नहीं होते. चूंकि वे एक प्रभावशाली छाप छोड़ पाने में असफल होते हैं, इसलिए वे सभ्य और सज्जन बन जाते हैं. सज्जनता का महत्त्व तभी है, जब इन गुणों को आप मजबूरी में नहीं, बल्कि अपनी इच्छा और पसंद से अपनाते हैं.

आपके भीतर हिंसा करने की क्षमता है, लेकिन फिर भी आप ऐसा नहीं करते, आप सभ्य बने रहते हैं, ऐसी हालत में आपकी सज्जनता का महत्त्व है. आपके भीतर हिंसा करने क्षमता ही नहीं है और ऐसे में आप खुद को सुशील और सभ्य बनाए रखते हैं, तो उसका कोई महत्त्व नहीं है, क्योंकि ऐसी सज्जनता की वजह एक खास तरह की अक्षमता या कमजोरी है.

भारत या कहें दुनिया भर में जितने भी देवता हैं, उन सभी में सबसे बलिष्ठ देवता शिव हैं. वे इतने ज्यादा मजबूत और प्रचंड हैं कि इस बात की पूरी संभावना है कि लोग उन्हें पौरु षवान यानी मॉचो-मैन समझें, और सुशील और सज्जन न मानें. ऐसे में भारतीय कलाकारों ने उनके सुशील और सज्जन नजर आने के लिए उनके शरीर के सभी बालों को साफ कर दिया. अगर ऐसा न किया जाता तो वह एक योद्धा की तरह आक्रामक लगते और लोगों को यह भरोसा ही नहीं होता कि वे भीतर से सज्जन भी हैं.

सामाजिक तौर पर अकसर यह देखा गया है कि सज्जनता को लोग गलती से कमजोरी समझ लेते हैं. हालांकि अब यह चीज बदल रही है, नहीं तो इससे पहले तक आमतौर पर लोग सज्जन कहलाने में शर्मिंंदगी महसूस करते थे. एक बार कोई मुझसे पूछ रहा था  ‘सद्गुरु , भारत में सभी देवियों के हाथ में हमेशा हथियार क्यों होता है? फिर हमारी भैरवी देवी के हाथ में कोई हथियार क्यों नहीं है?’

दस हाथ और हथियार एक भी नहीं, इसका कारण यह है कि वह हिंसा छोड़ चुकी हैं. महिषासुर पर विजय पाई जा चुकी है. जिसे हिंसा और क्रूरता के साथ संभालना था, उसे निबटाया जा चुका है, तो अब हाथ में हथियार रखने की कोई जरूरत ही नहीं. आप पूछ सकते हैं कि क्या हिंसा गलत है? यह सही और गलत का सवाल नहीं है. यह जीवन को चलाने का एक बेहद असभ्य तरीका है.



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment