मन

Last Updated 01 Nov 2017 04:25:11 AM IST

मन में घटाना या विभाजन जैसी कोई चीज नहीं होती. सिर्फ जोड़ या गुणा होता है.


जग्गी वासुदेव

आप जो भी कर रहे हैं, उससे बस अपने विचारों का गुणा करते जा रहे हैं, उसमें से कोई भी चीज निकाल नहीं सकते. ‘मुझे यह चीज नहीं चाहिए’  यह भी अपने आप में एक विचार ही है. तो आपके दिमाग में यह चलता रहता है, इसे चलने दीजिए. आपके दिमाग में कोई नई चीज नहीं आ रही है. जो चीज पहले से ही मौजूद है, बस वही घूम रही है.

तो आप ध्यान में बैठे हुए हैं और विचार उठ रहे हैं, तो इस दौरान आपको कुछ करना नहीं है. शैतान आता है, तो आपको उठकर भागना नहीं है, क्योंकि आपके मन में न तो भगवान आ सकते हैं, और न ही शैतान. सिर्फ  विचार ही आ सकते हैं.

लेकिन पंचानबे फीसद लोग इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं हैं. वे इस बात पर यकीन करना चाहते हैं कि कोई आता है, जबकि आपका मन किसी भगवान या शैतान को रिसीव करने के काबिल ही नहीं है. आपका मन सिर्फ  विचार पैदा करता है, और ये विचार भी उस डाटा से निकल रहे हैं, जो पहले से आपके भीतर इकट्ठे हैं, इसमें कुछ भी नया नहीं है.

वही चीजें, थोड़ी बदले हुए या बढ़े-चढ़े रूप में सामने आ रही हैं. तो विचारों की जो भी प्रकृति हो, चाहे वे चित्र रूप में सामने आ रहे हों या फिल्म के रूप में, जिस भी रूप में ये आपके सामने आएं, आप इनको लेकर कुछ मत कीजिए. यह सिर्फ  एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है. इसके बारे में कुछ भी किए जाने की जरूरत नहीं है. आध्यात्मिक प्रक्रिया अस्तित्वगत होती है, न कि मनोवैज्ञानिक. आध्यात्मिकता का मतलब एक खास तरह का व्यवहार विकसित कर लेना, खास तरह की अच्छाई या खास तरीके की दयालुता विकसित कर लेना नहीं है.

यह कहीं से भी आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं है. यह सिर्फ  खुद को समाज के काम आने लायक बनाए रखने का एक सामाजिक तरीका है. आध्यात्मिक प्रक्रिया का आपके आसपास होने वाली चीजों या घटनाओं या फिर आपके मन में चल रही चीजों से कोई लेना-देना नहीं होता. आपके मन में जो चल रहा है और आपके आसपास जो चल रहा है, वो दोनों कोई अलग-अजग चीजें नहीं होतीं. जो चीजें आपके आसपास घटित हो रही हैं, वो आपके मन में इकठ्ठी होती गई और फिर वे आपके मन के भीतर चक्कर काटकर आपको चकरा रही हैं.



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