अहंकार

Last Updated 03 Oct 2017 05:44:04 AM IST

यह असंभव है. अहंकार का त्याग नहीं किया जा सकता क्योंकि अहंकार का कोई अस्तित्व नहीं है. अहंकार केवल एक विचार है : उसमें कोई सार नहीं है.


आचार्य रजनीश ओशो

यह कुछ नहीं है - यह सिर्फ  शुद्ध कुछ भी नहीं है. तुम इस पर भरोसा करके इसे वास्तविकता दे देते हो. तुम भरोसा छोड़ सकते हो और वास्तविकता गायब हो जाती है, लुप्त हो जाती है.

अहंकार एक तरह का अभाव है. अहंकार इसलिए है क्योंकि तुम स्वयं को नहीं जानते. जिस क्षण तुम स्वयं को जान लेते हो, कोई अहंकार नहीं पाओगे. अहंकार अंधकार के समान है; अंधकार का अपना कोई सकारात्मक अस्तित्व नहीं होता; यह बस प्रकाश का अभाव है. तुम अंधकार से लड़ नहीं सकते, या लड़ सकते हो?

तुम अंधकार को कमरे के बाहर नहीं फेंक सकते; तुम उसे बाहर नहीं निकाल सकते, तुम उसे भीतर नहीं ला सकते. तुम अंधकार के साथ सीधे-सीधे कुछ नहीं कर सकते, इसके लिए तुम्हें प्रकाश के साथ कुछ करना होगा. यदि तुम प्रकाश करो तब अंधेरा नहीं रह जाएगा; यदि तुम प्रकाश बुझा दो, वहां अंधेरा है. अंधकार प्रकाश का अभाव है, अहंकार भी ऐसा ही है : आत्म-ज्ञान का अभाव.

तुम उसका त्याग नहीं कर सकते. तुम्हें बार-बार ये कहा गया है : ‘अपने अहंकार को मारो’-और यह वाक्य साफ तौर पर बेतुका है, क्योंकि जिस चीज का कोई आस्तित्व ही नहीं उसका त्याग भी नहीं किया जा सकता. और यदि तुम उसका त्याग करने की कोशिश भी करोगे, जो उपस्थित ही नहीं है, तो तुम एक नया अहंकार पैदा कर लोगे-विनम्र होने का अहंकार, निरहंकार होने का अहंकार, उस व्यक्ति का अहंकार जो सोचता है कि उसने अपने अहंकार का त्याग दे दिया. यह फिर से एक नये प्रकार का अंधकार होगा. नहीं, मैं तुमसे अहंकार का त्याग करने के लिए नहीं कहता. इसके उलट, मैं कहूंगा कि यह देखने की कोशिश करो कि अहंकार है कहां?

इसकी गहराई में देखो; इसे पकड़ने कि कोशिश करो कि आखिर यह है कहां, यह वास्तविकता में है भी या नहीं. किसी भी चीज का त्याग करने से पहले उसकी उपस्थिति को पक्का कर लेना चाहिए. पर आरम्भ से ही इसके विरोध में न चले जाओ. यदि इसका विरोध करते हो तो तुम इसको गहराई से नहीं देख सकोगे. किसी भी बात के विरोध में जाने की आवश्यकता नहीं है. अहंकार तुम्हारा अनुभव है. स्पष्ट दिख सकता है पर है तो तुम्हारा अनुभव ही.



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