खोज
एक युवक पूछता है, ‘मैंने जो भी पाया, सब खो दिया है. एक गहरी उदासी मुझे घेर लेती है और कहीं भी मुझे इसका अंत दिखाई नहीं देता-याकि इसका कोई अंत है ही नहीं?’
आचार्य रजनीश ओशो |
अधिकतर लोगों को तुमसे ईष्र्या होनी चाहिए. यह जानने पर कि सब समाप्त हो गया है, एक नई यात्रा का शुभारंभ है.
यह जानने पर कि ‘सब समाप्त हो गया है,‘एक नई खोज का शुभारंभ है, कुछ ऐसा, जो कभी खोता नहीं जब संसार व उसकी सफलताओं के सब भ्रम मिट जाते हैं, तभी आध्यात्मिकता का जन्म होता है. अभी भले ही तुम्हें इसका बोध न हो परंतु उदासी के इस पटल के पीछे से कुछ स्पंदित हुआ है, एक प्रसन्नता उभर रही है-एक नई खोज का उल्लास, एक नया उत्साह, एक नया जीवन, स्वयं की सत्ता को पाने की एक राह. ‘कहीं भी मुझे इसका अंत दिखाई नहीं देता-याकि इसका कोई अंत है ही नहीं?
‘मन का एक प्रारंभ है, और अंत भी; अहंकार का प्रारंभ है, और अंत भी, परंतु तुम्हारी ओर न कोई प्रारंभ है, न कोई अंत. और अस्तित्व के रहस्य का कोई प्रारंभ नहीं, कोई अंत नहीं. यह सतत प्रक्रिया है. रहस्य पर रहस्य तुम्हारी राह देख रहे हैं, फिर आगे है प्रफुल्लता और आनंद. आनंदित हो कि जीवन अंतहीन है, कि जब तुम एक शिखर तक पहुंचते हो, दूसरा शिखर तुम्हें चुनौतियां देने लगता है-और अधिक ऊंचाई, और अधिक कठिन आरोहण, अधिक जोखम-भरा शिखर.
और जब तुम दूसरे शिखर पर पहुंच जाते हो तो एक और शिखर प्रारंभ हो जाता है. यह जीवन की शात हिमालय-श्रृंखला है. बस, उस बिंदु पर सोचो जहां तुम पहुंचे हो और अब कुछ नहीं बचा तो तुम बुरी तरह ऊब जाओगे. तब यही ऊब तुम्हारा भाग्य बन जाएगी. और जीवन ऊब नहीं, उल्लास है, आह्लाद है. बहुत घटनाएं घट रही हैं, और बहुत-सी घटने वाली हैं.
रहस्य का कोई अंत नहीं, हो ही नहीं सकता. तभी तो यह रहस्य कहलाता है, इसे जाना नहीं जा सकता. यह कभी ज्ञान नहीं बन सकता, तभी तो यह रहस्य कहलाता है; इसमें कुछ ऐसा है जो सदा छलता है. और वही जीवन का सुख है. जीवन की गरिमा इसी में है कि तुम सदा तलाश में, खोज में संलग्न हो. जीवन अन्वेषण है, दुस्साहस है. आनंद हमारा स्वभाव है; आनंदित न होना बस, असंभव जैसा है. आनंदित होना नैसर्गिक है, स्वाभाविक है. और आनंदित होने के लिए किसी परिश्रम की आवश्यकता नहीं, दुखी होने के लिए परिश्रम अनिवार्य है.
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