महालया अमावस्या

Last Updated 13 Sep 2017 04:36:34 AM IST

दशहरे के पहले जो अमावस्या की रात आती है, उसे ‘महालया अमावस्या’ के नाम से जाना जाता है. एक तरह से इसी दिन से दशहरा की शुरु आत हो जाती है.


महालया अमावस्या

इंसान होने की सबसे महत्त्वपूर्ण चीज है कि हम औजारों का इस्तेमाल कर सकते हैं.

यह विशेष दिन हमारी उन सभी पिछली पीढ़ियों को समर्पित होता है, जिनने हमारे जीवन में किसी न किसी रूप में योगदान दिया है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान और उसके पूर्वज 2 करोड़ सालों से इस धरती पर हैं. हम जो भाषा बोलते हैं, जिस तरह बैठते हैं, हमारे कपड़े, इमारतें, जो कुछ भी जानते हैं, लगभग हर चीज हमें पिछली पीढ़ियों से मिली है. जब धरती पर सिर्फ  पशु थे, उस समय सिर्फ जीवित रहने की जद्दोजहद थी.

खाना, सोना, प्रजनन और एक दिन मर जाना ही जीवन था. धीरे-धीरे उस पशु ने विकास करना शुरू किया. पशु की तरह चलने की जगह खड़ा होना शुरू किया, उसका दिमाग विकसित होने लगा. क्षमताएं तेजी से बढ़ने लगीं. विकसित होकर वह पशु, इंसान बना. इंसान होने की महत्त्वपूर्ण चीज है कि हम औजारों का इस्तेमाल कर सकते हैं.

इस साधारण क्षमता को हमने बढ़ाया. उसे तकनीकों के विकास तक ले गए. जिस दिन एक वानर ने अपने हाथों के बजाय किसी पशु की हड्डी उठाकर उसकी मदद से लड़ना शुरू किया था, जिस दिन उसे अपनी जिंदगी आसान बनाने के लिए अपने शरीर के अलावा औजारों के इस्तेमाल की जरूरत समझ आ गई, एक तरह से धरती पर वही मानव जीवन की शुरु आत थी.

इस समय भारतीय उपमहाद्वीप में नई फसल का पकना भी शुरू हो जाता है. इसलिए पूर्वजों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के प्रतीक रूप में सबसे पहला अन्न उन्हें पिंड के रूप में भेंट करने की प्रथा रही है. उसके बाद इंसान ने जिंदगी को योजनाबद्ध करना शुरू कर दिया. रहने के लिए ठिकाने बने, इमारतें बनीं, कपड़े आए.

आग पैदा करने जैसी मामूली चीज से लेकर पहिये और असंख्य दूसरी चीजों की खोज तक, यह विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी सौंपी जाती रही. हम आज इस रूप में सिर्फ  इसलिए हैं क्योंकि इतनी सारी चीजें विरासत में मिलीं. मान लीजिए इंसान ने कभी कपड़े नहीं पहने होते और आप एक कमीज बनाने वाले पहले इंसान होते तो वह कोई आसान काम नहीं होता. कमीज बनाने का तरीका खोजने में कई साल लग जाते.



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