बिहार में चुनावी दांव

Last Updated 10 Jul 2025 03:11:02 PM IST

विधानसभा चुनाव से ऐन पहले महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए बिहार सरकार ने सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण की बात की है। अब तक सभी महिलाओं को मिलने वाले इस आरक्षण पर नीतीश कैबिनेट ने डोमिसाइल नीति लागू की है।


बिहार में चुनावी दांव

यह स्थानीय प्रमाणपत्र होता है। राज्य सरकारें इनके आधार पर स्थानीय युवाओं को सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और स्थानीय योजनाओं में प्राथमिकता देती हैं।

इसके बाद अन्य राज्यों की महिलाएं भी सामान्य कोटे में आवेदन कर सकेंगी। यह व्यवस्था पहले ही हरियाणा, मप्र, हिप्र, राजस्थान और उत्तराखंड में लागू है। बिहार के युवा अन्य राज्यों की नीति के चलते नुकसान झेलने की बात करते रहे हैं।

बैठक में कुल 43 एजेंडों पर मुहर लगी जिनमें युवा आयोग और दिव्यांगजन सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना भी है। दिव्यांगों को प्रोत्साहित करने तथा पुरुष दिव्यांग अभ्यर्थियों को पिछड़ा, सामान्य और आर्थिक तौर पर कमजोर युवाओं के लिए यह योजना है।

बिहार में 60% जातीय-आर्थिक आरक्षण पहले से ही लागू है। 35% मूल बिहारी महिलाओं के इस आरक्षण के बाद यह बढ़ कर 74% पर पहुंच जाएगा जिसका सीधा असर अनारक्षित वर्ग पर पड़ेगा जिसके लिए बस 14% सीटें ही बचेंगी।

वर्तमान में राज्य में 18% अतिपिछड़ा, 12% अन्य पिछड़ा, 16% एससी, एक प्रतिशत एसटी और ओबीसी महिलाओं का 3% आरक्षण लागू है।

इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का 10% भी है। शीर्ष अदालत द्वारा आरक्षण की सीमा पर लगाम लगाने की नसीहतों को चुनौती देते हुए राज्य सरकारें चुनावी लाभ के लोभ में इस तरह की कवायद करती रहती हैं।

समर्थकों और मतदाओं को लुभाने के आधार पर आरक्षण के जाल फेंकती हैं। विपक्ष का भी आरोप है कि मतदाताओं के रुझान का आभास होते ही नीतीश सरकार द्वारा यह दांव चला गया है।

हालांकि देखने में आता है कि महिलाओं की लाभकारी योजनाओं का ऐलान करके पूर्ववर्ती सरकारों ने खासा चुनावी लाभ लिया था।  मगर यह उन शिक्षित और जरूरतमंद महिलाओं के भविष्य के लिए बेहतर साबित हो सकता है, जो विभिन्न कारणों से नौकरी के लिए परिवार से दूर नहीं जा सकतीं।

दिव्यांगों को सिविल सेवा के लिए तैयार करने की यह योजना यदि सार्थक रहती है, तो इसे देश के स्तर पर लागू करने के प्रयास भी होने चाहिए।



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