स्त्री और सभ्यता
बुनियादी भूल जो सारी शिक्षा और सारी सभ्यता को खाए जा रही है, वह यह है कि अब तक के जीवन का सारा निर्माण पुरुष के आसपास हुआ है, स्त्री के आसपास नहीं.
आचार्या रजनीश ओशो |
पुरुष बिल्कुल अधूरा है, स्त्री के बिना तो बहुत अधूरा है. अकेला ही सभ्यता को निर्मिंत करेगा तो वह सभ्यता भी अधूरी होगी; न केवल अधूरी होगी, बल्कि खतरनाक भी होगी. इसलिए होगी कि पुरुष के मन की जो तीव्र आकांक्षा है वह एंबीशन है, महत्त्वाकांक्षा है.
पुरुष के मन में प्रेम बहुत गहराई पर नहीं है, महत्त्वाकांक्षा! और जहां महत्त्वाकांक्षा है वहां ईष्र्या होगी, जहां महत्त्वाकांक्षा है वहां हिंसा होगी, जहां महत्त्वाकांक्षा है वहां घृणा होगी, जहां महत्त्वाकांक्षा है वहां युद्ध होगा. पुरु ष का सारा चित्त एंबीशन से भरा हुआ है. स्त्री के चित्त में एंबीशन नहीं है, महत्त्वाकांक्षा नहीं है, बल्कि प्रेम है. और हमारी पूरी सभ्यता प्रेम से बिल्कुल शून्य है, प्रेम से बिल्कुल रिक्त है, प्रेम की उसमें कोई जगह नहीं है.
पुरुष ने अपने ही ढंग से पूरी बात निर्मिंत कर ली है. जीवन की जो संरचना की है वह अपने ही ढंग से की है. उसमें युद्ध प्रमुख है, उसमें संघर्ष प्रमुख है, उसमें तलवार प्रमुख है. यहां तक कि कोई स्त्री भी तलवार लेकर खड़ी हो जाती है तो पुरु ष उसे बहुत आदर देता है. जोन ऑफ आर्क को, झांसी की रानी लक्ष्मी को पुरु ष बहुत आदर देता है. इसलिए नहीं कि वे बहुत कीमती स्त्रियां थीं, बल्कि इसलिए कि वे पुरु ष जैसी स्त्रियां थीं. वह गीत गाता है: खूब लड़ी मर्दानी, झांसी वाली रानी थी.
लेकिन अगर कोई पुरुष जनाना हो तो अनादर करता है, आदर नहीं देता. पुरु ष के मन में हिंसा के और महत्त्वाकांक्षा के अतिरिक्त किसी बात का कोई सम्मान नहीं है. यह जो पुरु ष अधूरा है, सारी शिक्षा भी उसी पुरु ष के लिए निर्मिंत हुई है. हजारों वर्षो तक स्त्री को कोई शिक्षा नहीं दी गई. एक बड़ी भूल थी कि स्त्री अशिक्षित रह जाए. फिर कुछ वर्षो से स्त्री को शिक्षा दी जा रही है. और अब दूसरी भूल की जा रही है कि स्त्री को पुरु षों जैसी शिक्षा दी जा रही है.
यह अशिक्षित स्त्री से भी खतरनाक स्त्री को पैदा करेगी. अशिक्षित स्त्री कम से कम स्त्री थी. शिक्षित स्त्री पुरु ष के ज्यादा करीब आ जाती है, स्त्री कम रह जाती है क्योंकि जिस शिक्षा से गुजरती है, उसका मौलिक निर्माण पुरु ष के लिए हुआ है. एक ऐसी स्त्री पैदा हो रही है सारी दुनिया में, जो अगर सौ दो सौ वर्ष इसी तरह की शिक्षा चलती रही तो अपने समस्त स्त्री-धर्म को खो देगी.
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