योग : आत्महत्या गलत

Last Updated 21 Jun 2017 02:25:21 AM IST

दिवस पर हमारा फोकस देश के बच्चों और सेना के जवानों तक पहुंचने का है.


जग्गी वासुदेव

 

 

 

हालांकि, हमारे पास ऐसा कोई ठोस आंकड़ा तो नहीं है कि पिछले एक साल में कितने सैनिकों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन हम इतना जरूर जानते हैं कि केवल साल 2015 में भारत में लगभग दस हजार बच्चों ने आत्महत्या की, जिनमें से लगभग पंद्रह सौ बच्चे चौदह साल से कम उम्र के थे.

अगर हमारे बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं तो इसका सीधा-सा मतलब है कि बतौर एक समाज, हम  बुनियादी रूप से कुछ गलत कर रहे हैं. यह मुद्दा भारत जैसे देश में बहुत गंभीर है, जहां लोग गरीबी से निकल कर आर्थिक समृद्धि की ओर बढ़ने के लिए बुरी तरह कोशिश कर रहे हैं. बच्चों के आत्महत्या का एक प्रमुख कारण इम्तिहानों में फेल होना है.

इसकी दूसरी वजह किशोरावस्था के प्रेम संबंध भी हैं. पिछले साल हमने देश भर के लगभग पैंतीस हजार स्कूलों तक पहुंच कर  बच्चों को योग का एक सहज रूप सिखाया. वैसे, भारत जैसे विशाल देश में पैंतीस हजार स्कूल एक बहुत ही छोटी-सी संख्या है. हम लोग योग के जिस सहज और आसान से स्वरूप ‘उप-योग’ को सिखाते हैं, वह न सिर्फ सीखने-सिखाने में आसान है, बल्कि उसका अभ्यास भी आसान है. बड़े पैमाने पर बच्चों तक पहुंचने के लिए प्रक्रिया आसान होनी चाहिए.

 

उप-योग का एक मकसद अपने भीतर संतुलन स्थापित करना भी है. बुनियादी तौर पर आत्महत्या का कारण है कि इंसान के भीतर भावनाओं के बड़े- बड़े ज्वार उठते हैं, जिसके चलते उसे महसूस होता है कि जीने की अपेक्षा मरना ही बेहतर है. अनेक लोंगों के जीवन में ऐसे कई मौके आए जब कुछ चीजें वाकई गड़बड़ हुई और वे भावनात्मक रूप से इतने अव्यवस्थित हुए कि उन्हें लगा कि खुद को खत्म ही कर लें. लेकिन वो क्षण गुजर गए और उन्होंने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया.

दुर्भाग्य से कुछ लोगों के जीवन में भावनात्मक ज्वार इस हद तक उभरा कि उन्होंने वास्तव में आत्मघाती कदम उठा लिया. हालांकि, भारत में आत्महत्याओं की कोशिश के वास्तविक आंकड़ों के बारे में पता लगना तो मुश्किल है, क्योंकि यहां कोई इस बात को स्वीकार नहीं करेगा कि उसने ऐसी कोई कोशिश की थी. यह अफसोसजनक सच्चाई है कि जिन बच्चों को जीवन की ऊर्जा और आनंद से भरपूर होना चाहिए, वे अपना जीवन लेने की सोच रहे हैं.

समयलाइव डेस्क


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