धर्म का खिलौना

Last Updated 20 Jun 2017 04:35:50 AM IST

वास्तविक धर्म को ईश्वर और शैतान, स्वर्ग और नरक से कुछ लेना-देना नहीं है. धर्म के लिए अंग्रेजी में जो शब्द है ‘रिलीजन’ वह महत्वपूर्ण है.


आचार्य रजनीश ओशो

उसे समझो, उसका मतलब है खंडों को, हिस्सों को संयुक्त करना; ताकि खंड-खंड न रह जाएं वरन पूर्ण हो जाएं. इसका  मूल अर्थ है एक ऐसा संयोजन बिठाना कि अंश अंश न रहे बल्कि पूर्ण हो जाए. जुड़ कर प्रत्येक अंश स्वयं में संपूर्ण हो जाता है. संयुक्त होते ही, अभिन्न होते ही एक नई गुणवत्ता प्रकट होती है-पूर्णता की गुणवत्ता.

और जीवन में उस गुणवत्ता को जन्माना ही धर्म का लक्ष्य है. ईश्वर या शैतान से धर्म का कोई संबंध नहीं है. लेकिन धर्मो ने जिस तरह से जगत में कार्य किया ..उन्होंने उसका पूरा गुणधर्म, उसकी पूरी संरचना ही बदल डाली; बजाय इसके कि उसे बनाते अंतस की एकता का विज्ञान ताकि मनुष्य विखंडित न रहे, एक हो जाए. धर्मो की वजह से मनुष्यता धर्म शब्द का अर्थ तक भूल गई है.

वे अखंडित मनुष्य के खिलाफ हैं क्योंकि अखंडित मनुष्य को न ईश्वर की जरूरत है, न पादरी-पुरोहितों की, न मंदिर-मस्जिदों और चचरे की. अखंडित मनुष्य आप्तकाम होता है-स्वयं में पर्याप्त. वह इतना परितृप्त है कि फिर उसे परम पिता के रूप में, दूर कहीं स्वर्ग में बैठे, उसकी देखभाल करने वाले किसी ईश्वर की कोई मानसिक जरूरत नहीं रह जाती. ये तथाकथित धर्म जो पृथ्वी पर कई रूपों में मौजूद हैं-हिंदू, मुसलमान, ईसाई, यहूदी, जैन, बौद्ध, और न जाने कितने धर्म. जमीन पर कोई तीन सौ धर्म हैं, और सब के सब एक ही काम में संलग्न हैं.

वे ठीक उसी आवश्यकता की पूर्ति कर रहे हैं-तुम्हें झूठी तृप्ति दे रहे हैं. कहते हैं कि ईश्वर है, जो तुम्हारी फिक्र लेता है, तुम्हारी देखभाल करता है. पैगंबर और मसीहा भेजता है ताकि तुम कहीं भटक न जाओ. और यदि तुम भटक जाओ तो वे तुम्हारी दूसरी कमजोरी का शोषण करते हैं-शैतान का भय, जो हर संभव ढंग से तुम्हें गलत रास्ते पर ले जाने की कोशिश में लगा है.

साधारणत: जैसी मनुष्यता इस समय है, एक तरफ तो इसे ईश्वर की, संरक्षक की, पथ प्रदशर्क की, और सहयोग की जरूरत है, और दूसरी तरफ एक नरक की ताकि आदमी उन सभी रास्तों पर चलने से डरा रहे, जिन्हें पादरी-पुरोहित गलत समझते हैं. पर क्या गलत है और क्या सही है, हर समाज में यह भिन्न-भिन्न है. इसलिए सही और गलत समाज द्वारा निर्णीत होते हैं, उनका कोई अस्तित्वगत मूल्य नहीं है.



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