वासंतिक नवरात्र : सप्तमं कालरात्रीति

Last Updated 03 Apr 2017 06:09:51 AM IST

मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं.


मां कालरात्रीति (फाइल फोटो)

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।


मां कालरात्रीति के शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एकदम काला है. सिर के बाल बिखरे हुए हैं. गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है. इनके तीन नेत्र हैं. ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं. इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं.

इनकी नासिका के श्वास-प्रास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं. इनका वाहन गर्दभ-गदहा है.

मां कालरात्रीति ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं. दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है. बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है.



मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं. इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकरी’ भी है. 

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है. इस दिन साधक का मन ‘सहस्रर’ चक्र में स्थित रहता है. उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है.

 

 

समय न्यूज डेस्क


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