आलस्य का त्याग
हम सभी को बचपन से ही अपने भीतर अच्छे संस्कारों, अच्छे विचारों और अच्छे कार्यों के बीज अंकुरित करने का प्रयास करना चाहिए. इस कार्य के लिए प्रात:काल का समय बेहद महत्त्वपूर्ण होता है.
आचार्य सुदर्शनजी महाराज (फाइल फोटो) |
अत: प्रतिदिन प्रात:काल में अपनी आंखों को बंद करके परमात्मा से प्रार्थना करो कि हे परमात्मा! तुम मुझमें शक्ति भरो. मेरी आंखों में शक्ति दो. मेरे मस्तिष्क, मुंह, ग्रीवा, वक्षस्थल, लीवर, हृदय और फेफड़े को अपने प्रकाश से प्रकाशित करो. इन्हें शक्तिवान बनाओ. मेरी इंद्रियां को सबल बनाओ और रोम-रोम को स्वस्थ करो. यह सुनिश्चित करो कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश मेरे शरीर को स्वस्थ रखें, ताकि मैं अपने जीवन को शक्तिशाली बनाकर रख सकूं.
मेरा मानना है कि यदि तुम अपने जीवन के बारे में उत्तम विचार रखते हो तो तुम्हारा जीवन उत्तम बनेगा और यदि तुम जीवन के प्रति नकारात्मक भाव रखते हो तो तुम्हारा सारा जीवन नकारात्मक बन जाएगा. तुम्हारे शरीर में जो जीवनी शक्ति है वह नकारात्मक बन जाएगी, क्योंकि तुम्हारा शरीर तुम्हारे ही विचारों से प्रभावित होता है. जैसा तुम्हारा विचार होगा, वैसा ही तुम्हारा जीवन भी होगा. जो लोग जीवन को आनंद के रूप में, ऐर्य के रूप में, सफलता के रूप में और संगीत के रूप में स्वीकार करते हैं, उनका जीवन आनंदमय हो जाता है. ऐर्यमय हो जाता है. संगीतमय हो जाता है.
दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं, जो जीवन को निराशा, असफलता और विपत्ति के रूप में स्वीकार करते हैं, लिहाजा उनका जीवन आंसू बनकर बह जाता है. अब प्रश्न यह उठता है कि हम अपने जीवन का आनंद के रूप में स्वीकार करते हैं या दुख के सागर के रूप में स्वीकार करते हैं. जीवन को इससे कुछ लेना-देना नहीं है कि वह आपके जीवन में दुख लेकर आए या सुख लेकर. जीवन तो सीधा जीवन है. आप उसे जिस पात्र में रखेंगे, उसका स्वरूप वैसा बन जाएगा.
जैसे गंगाजल को यदि घड़े में रखेंगे तो उसका स्वरूप घड़े का बन जाएगा और छोटी लोटकी में रखेंगे तो वह लोटकी जैसा बन जाएगा. इससे जीवन को कोई अंतर नहीं पड़ता कि आपका पात्र कैसा है? आप सब लोग एक संपूर्ण जीवन के स्वामी हैं. यदि आपके जीवन में कोई विकृति है, कोई विकार है, तो प्रतिदिन प्रात:काल यह संकल्प लें कि अब मेरा विकार नष्ट हो रहा है. मेरा जीवन सबल बनता जा रहा है. ऐसे विचारों को प्रतिदिन प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए.
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