शरीर और मन
शरीर को भली भांति काम करना चाहिए, अच्छी तरह से. यह एक कला है, यह तप नहीं है. तुम्हें उसके साथ लड़ना नहीं है, तुम्हें उसे केवल समझना है.
शरीर और मन |
शरीर इतना बुद्धिमान है.. तुम्हारे मस्तिष्क से बुद्धिमान, ध्यान रहे, क्योंकि शरीर मस्तिष्क से ज्यादा समय जीया है. मस्तिष्क बिल्कुल नया आया है, महज एक बच्चा है. शरीर बहुत प्राचीन है, बहुत ही प्राचीन .. क्योंकि कभी तुम एक पत्थर की तरह जीते थे, शरीर तो था लेकिन मन सोया हुआ था.
फिर तुम एक पेड़ हुए; शरीर था उसकी पूरी हरियाली और फूलों के साथ. लेकिन मन अभी भी गहरी नींद सोया था; पत्थर की तरह न सही, लेकिन फिर भी सोया तो था. फिर तुम बाघ हुए, पशु हुए,; शरीर ऊर्जा से इतना ओतप्रोत था, लेकिन मन काम नहीं कर रहा था. तुम पक्षी हुए, मनुष्य हुए .. शरीर लाखों साल से कार्यरत है. शरीर ने अत्यधिक प्रज्ञा इकट्ठी कर ली है.
शरीर बहुत प्रज्ञावान है. इसलिए यदि तुम बहुत ज्यादा खाते हो तो शरीर कहता है, ‘रु क जाओ!’ मन इतना बुद्धिमान नहीं है. मन कहता है, ‘स्वाद अच्छा है, थोड़ा अधिक लो. ‘अगर तुम मन की सुनते हो तो तो मन शरीर का नुकसान करता है किसी-न-किसी प्रकार से. यदि तुम मन की सुनोगे, तब मन पहले तो कहेगा, ‘खाये जाओ.’ क्योंकि मन मूर्ख है, बच्चा है.
वह नहीं जानता वह क्या कह रहा है. वह नया-नया आया है. उसके भीतर कोई शिक्षा नहीं है. वह बुद्धिमान नहीं है, वह अभी भी मूर्ख है. शरीर की सुनो. जब शरीर कहता है, भूख लगी है तब खाओ. जब शरीर कहता है, रु क जाओ, तब रु को. जब तुम मन की सुनते हो तो यह ऐसा है जैसे एक छोटा बच्चा एक बूढ़े आदमी को राह दिखा रहा है, वे दोनों गड्ढे में गिरेंगे.
अगर तुम मन की सुनोगे तो पहले तुम इंद्रियों में गिर जाओगे और फिर तुम उससे ऊब जाओगे. हर इंद्रिय तुम्हारे लिए दुख ले आएंगी और हर इंद्रिय अधिक चिंता, क्लेश और पीड़ा ले आएंगी. अगर तुमने बहुत ज्यादा खा लिया तो पीड़ा होगी और फिर उलटी हो जाएगी. तब मन कहता है, ‘भोजन बुरा है, इसलिए उपवास करो.’ और उपवास सदा खतरनाक होता है.
अगर तुम शरीर की सुनो तो वह कभी ज्यादा नहीं खाएगा और न कभी कम खाएगा; वह सिर्फ ताओ का अनुसरण करेगा. कुछ वैज्ञानिक इस समस्या पर काम कर रहे हैं और उन्होंने बहुत सुंदर तथ्य की खोज की है: छोटे बच्चे तभी खाते हैं जब वे भूखे होते हैं, वे तभी सोते हैं जब उन्हें नींद आती है. वे अपने शरीर की सुनते हैं.
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