आनंद
पिछली कुछ सदियों के अंदर मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधाओं के लिए इस पृथ्वी का चेहरा ही बदल दिया है.
जग्गी वासुदेव |
दूसरे प्राणियों के अस्तित्व की कोई परवाह किए बिना उसने कीट-पतंग, पशु-पक्षी सभी के स्थानों पर कब्जा कर लिया है.
वृक्ष-लताओं और घास-फूस को भी नहीं बक्शा है. जमीन, पानी सभी का मनमाने ढंग से दुरु पयोग करके ऐसा माहौल पैदा कर दिया है कि जिसमें सांस लेना भी दूभर लग रहा है. यह सब किसलिए? केवल इसी लोभ से न कि अपना जीवन सुखमय बने. खुशी के आलम में मस्त होकर वह इस पृथ्वी के गोले को आतिशबाजी की तरह जला डाले, हमें कोई एतराज नहीं है.
लेकिन, अपने आनंद का आस्वाद लेने की कला से अनिभज्ञ होकर पृथ्वी को लगातार ध्वस्त करते रहने का उसे कोई अधिकार नहीं है. मेरी एक बुआ थीं. आधुनिक विचारों की महिला. कीमती साड़ी में सज-धजकर क्लब की गतिविधियों में भाग लेतीं. विमला नामक सदस्या और बुआ में हमेशा अनबन रहती थी.
एक बार मीटिंग से लौटते ही बुआ फफककर रोने लगीं. क्या वे प्रधान का चुनाव हार गई? क्या उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई? अथवा कौन-सा रंज है? समझ में नहीं आया. ‘विमला ने आज मुझसे डटकर बदला ले लिया रे!’ रूदन के बीच में पल्राप करते हुए बुआ ने विवरण दिया. जान-बूझकर की गई उपेक्षा नहीं तो क्या है?
जरूर उस विमला के उकसाने पर ही सभी ने मेरी बेइज्जती की है. रोते-रोते बुआ ने विमला को दो गालियां भी दीं. उस दिन बुआ एक नया नेकलस पहनकर बैठक में गई थीं. सहेली मेंबरों के पूछने पर नेकलस की खूबियों के बारे में क्या-क्या बताना है, इसकी सूची मन में तैयार कर रखी थी. लेकिन अफसोस, किसी भी मेंबर ने भूलकर भी बुआ के नेकलेस पर नजर फेरी नहीं.
बुआ ने वह कीमती नेकलस अपनी खुशी के लिए ही खरीदा था. लेकिन चुपके से कहीं बैठकर बुआ की खुशी को छीनना विमला के लिए सुलभ हो गया. कैसी वाहियात बात है! आपके जीवन में भी ऐसी घटना घट सकती है.
आपकी कामना का लक्ष्य क्या है? खुशी पाना, यही न? लेकिन आप कहां गलती करते हैं? आप न जाने इसके लिए क्या-क्या शत्रे लगा देते हैं. मेरे पास इतना धन रहे तभी खुशी होगी. अपनी खुशी को दूसरों की टिप्पणियों और बाहरी परिस्थितियों के लिए गिरवी रखे बिना, यात्रा जारी रखिए. आप इस दुनिया को ही अपनी इच्छा के अनुसार बदल सकते हैं.
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